Book Title: Jain Muni Ke Vrataropan Ki Traikalik Upayogita Navyayug ke Sandarbh Me
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
View full book text
________________
प्रव्रज्या विधि की शास्त्रीय विचारणा... 69 1. पुरतः प्रतिबद्धा - दीक्षा लेने पर मेरे शिष्यादि होंगे, इस अभिलाषा से ली जाने वाली दीक्षा।
2. पृष्ठतः प्रतिबद्धा - स्वजन आदि से स्नेह का विच्छेद न हो, इस भावना से ली जाने वाली दीक्षा।
3. उभयतः प्रतिबद्धा - उक्त दोनों कारणों से ली जाने वाली दीक्षा। प्रकारान्तर से निम्न तीन प्रकार भी बताये गये हैं371. तोदयित्वा - कष्ट देकर ली जाने वाली प्रव्रज्या। 2. प्लावयित्वा - दूसरे स्थान पर ली जाने वाली प्रव्रज्या। 3. वाचयित्वा - बातचीत करके ली जाने वाली प्रव्रज्या।
स्थानांग टीका में तोदयित्वा प्रव्रज्या के लिए सागरचन्द्र का, प्लावयित्वा दीक्षा के लिए आर्यरक्षित का और वाचयित्वा दीक्षा के लिए एक किसान का उल्लेख किया गया है।
प्रव्रज्या के तीन प्रकार निम्न भी हैं38_ 1. अवपात प्रव्रज्या - गुरु सेवा से प्राप्त होने वाली प्रव्रज्या। 2. आख्यात प्रव्रज्या - उपदेश के द्वारा प्राप्त होने वाली प्रव्रज्या। 3. संगार प्रव्रज्या - परस्पर प्रतिज्ञाबद्ध होकर ली जाने वाली
प्रव्रज्या । बाल दीक्षा की प्रासंगिकता कितनी और क्यों ? • दीक्षा शास्त्रीय सम्मत कैसे?
वर्तमान युग का एक ज्वलन्त प्रश्न है कि अल्पवयस्क बालक-बालिका को दीक्षा देना कहाँ तक उचित है ? इस प्रश्न को लेकर यदि हम जैन इतिहास का अवलोकन करते हैं तो पाते हैं कि जैन आगम ग्रन्थों में बाल दीक्षा के कई उल्लेख हैं। भगवतीसूत्र के अनुसार अतिमुक्त कुमार ने छ: वर्ष की उम्र में दीक्षा ग्रहण की थी।39 गजसुकुमाल मुनि भी लघु वय के थे। उन्होंने युवावस्था में प्रवेश करने से पूर्व ही संयम पथ को अपना लिया था।40 चतुर्दशपूर्वधर आचार्य शय्यंभव ने पुत्र मनक को और आर्य सिंहगिरि ने वज्रस्वामी को अति लघवय में दीक्षा प्रदान की थी।
* अनन्त लब्धि निधान गौतमस्वामी ने अतिमुक्त को प्रतिबोधित कर अल्पवय में ही दीक्षा की योग्यता का आकलन किया।