Book Title: Jain Muni Ke Vrataropan Ki Traikalik Upayogita Navyayug ke Sandarbh Me
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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प्रव्रज्या विधि की शास्त्रीय विचारणा... 99
पाठों को पढ़कर गुरु को प्रणाम करे । तदनन्तर दीक्षा दानी गृहस्थ शान्तिक एवं गणधरवलय की यथाशक्ति पूजादि करवाये । फिर दीक्षार्थी को स्नानादि करवाकर आभूषणों से सज्जित कर, हर्षोल्लास पूर्वक चैत्यालय लेकर आये। वहाँ दीक्षार्थी देव - शास्त्र - गुरु की पूजा करे और सकल संघ से क्षमायाचना करे। फिर गुरु के सम्मुख उपस्थित होकर दीक्षा दान की प्रार्थना करे ।
लोच विधि - गुर्वानुमति के प्राप्त होने पर सौभाग्यवती नारी भूमि पर स्वस्तिक कर उसके ऊपर श्वेत वस्त्र आच्छादित करे। फिर मुमुक्षु को पूर्व दिशा की ओर मुख करके उस पर बिठा दें। गुरु उत्तर दिशा की ओर सुख करके संघ की स्वीकृति पूर्वक उसका लोच करें।
लोच विधि के अन्तर्गत सबसे पहले सिद्धयोगि भक्ति पाठ पढ़ें। गन्धोदक को शान्तिमन्त्र से तीन बार अभिमन्त्रित कर मुमुक्षु के मस्तक पर डालें। पुनः शान्तिमन्त्र से गन्धोदक को तीन बार सिञ्चित कर उसके मस्तक से उसे स्पर्श करवायें। तत्पश्चात दीक्षार्थी के मस्तक पर वर्धमानमन्त्र लिखकर उस पर दहीअक्षत-गोरस-दूर्वा का निक्षेप करें। फिर मन्त्रपाठ पढ़कर भस्मपात्र को ग्रहण करें। उसके बाद कर्पूर मिश्रित भस्म (राख) को सिर पर डालकर मन्त्रोच्चारपूर्वक केशोत्पाटन करें। तत्पश्चात सिद्धभक्ति का कायोत्सर्ग करें, फिर लघुसिद्धभक्ति पढ़ें। फिर मस्तक का प्रक्षालन एवं गुरुभक्ति पाठ पढ़कर वस्त्राभूषणों का परित्याग करें। उसके बाद गुरु शिष्य के मस्तक पर 'श्रीकार' लिखें। उस श्रीकार के चारों दिशाओं में यानी पूर्व में 3, दक्षिण में 24, पश्चिम में 5 और उत्तर में 2 का अंक लिखें।
व्रतादि स्वीकार - तत्पश्चात शिष्य के अक्षतभरी अञ्जलि के ऊपर नारियल और पूँगीफल रखकर सिद्ध चारित्र योगिभक्ति पढ़कर व्रतादि दिलवायें। व्रतपाठ का तीन बार उच्चारण कर शान्तिभक्ति पढ़ें।
सोलह संस्कार - उसके बाद अञ्जलि खाली करवाकर सोलह संस्कारों का आरोपण करें। फिर उसके मस्तक पर लवंग- पुष्पों का निक्षेप करें।
नामकरण तदनन्तर दीक्षाग्राही की गुरु परम्परा पढ़ें, फिर अमुक गुरु के शिष्य ऐसा निर्धारण कर नया नामकरण करें।
उपकरण प्रदान फिर मन्त्रोच्चारण के साथ पिच्छिका, शास्त्र एवं कमण्डलु प्रदान करें। उसके बाद नवदीक्षित समाधिभक्ति पढ़े। फिर गुरुभक्ति
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