Book Title: Jain Muni Ke Vrataropan Ki Traikalik Upayogita Navyayug ke Sandarbh Me
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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प्रव्रज्या विधि की शास्त्रीय विचारणा... 109
उसे तीन बार किया जाता है। मुस्लिम समाज में निकाह (शादी) या तलाक जब तक तीन बार कुबूल नहीं किये जाते उन्हें जायज़ नहीं माना जाता, वैसे ही तीन बार चोटी लेने से शिष्य के भीतर तक उसके संयमी होने की बात रम जाती है तथा सुषुप्त ग्रन्थियाँ भी जागृत हो जाती हैं।
ओढ़ी में पान एवं पूंगीफल (सुपारी) का निक्षेप क्यों? दीक्षार्थी के लिए दीक्षा उपकरणों की जो ओढ़ी तैयार की जाती है उसमें पान एवं पूंगीफल (सुपारी) रखने का विधान है। प्रश्न उठता है कि दीक्षा के उपकरण तो स्वयं मंगल स्वरूप हैं, फिर इनकी आवश्यकता क्यों? चिन्तन करने पर ज्ञात होता है कि दीक्षा एक मांगलिक कार्य है और हम देखते हैं कि प्रत्येक मांगलिक क्रिया में पान एवं सुपारी का प्रयोग धार्मिक एवं व्यावहारिक जगत में किया जाता है। अत: मंगल एवं व्यवहार जगत के अनुकरण रूप यह क्रिया समयानुसार सम्मिलित हो गयी है।
दूसरा तथ्य यह है कि पान एवं सुपारी देवताओं को प्रिय है। इसे रखने से क्षुद्र देवी-देवताओं का उपद्रव या ऊपरी शक्तियों का प्रभाव दीक्षा उपकरणों एवं दीक्षार्थी के जीवन में नहीं होता। ___तीसरा प्रयोजन यह है कि सुपारी श्रेष्ठ फलों में मानी जाती है। यह अखण्डता एवं सौभाग्य की भी सूचक है। इसी के साथ पान के पत्ते को पवित्रता एवं शुद्धिकरण के लिए उत्तम माना है, अत: संयमग्राही के भावों की शुद्धता, अखण्डता एवं सौभाग्य के हेतु से इन्हें ओढ़ी में रखा जाता होगा, ऐसा
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सम्भव है।
ओढ़ी के दोनों ओर तलवार किस प्रयोजन से रखी जाए? दीक्षा की ओढ़ी के आगे दोनों तरफ तलवार रखी जाती है। प्रश्न उठ सकता है कि ऐसा क्यों? जैन धर्म तो अहिंसावादी धर्म है तथा संयममार्ग का ग्रहण पूर्ण अहिंसा का स्वीकार है तो फिर वहाँ तलवार रखने का क्या प्रयोजन?
संयम मार्ग को “खांडे की धार" असिधारा पथ कहा गया है, अत: जब दीक्षार्थी उस कठिन पथ पर आरूढ़ हो रहा होता है, उस समय दुःसाध्य दुस्तर रूप में तलवार आगे लेकर चलते हैं। दूसरा तथ्य यह सम्भावित है कि इसके द्वारा दीक्षार्थी को प्रेरणा दी जाती है कि अब तुम्हें जीवन में इन उपकरणों का प्रयोग उतनी ही सजगता के साथ करना है जितनी सजगता से तलवार का प्रयोग