Book Title: Jain Muni Ke Vrataropan Ki Traikalik Upayogita Navyayug ke Sandarbh Me
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
View full book text
________________
प्रव्रज्या विधि की शास्त्रीय विचारणा... 67 16. लिखितक हो, 17. सीपदि रोग से ग्रसित हो, 18. तीक्ष्ण रोग से ग्रस्त हो, 19. परिषद् दूषक हो, 20. काना अर्थात एक चक्षु से हीन हो, 21. लूला हो, 22. लंगड़ा हो, 23. पक्षाघात करता हो, 24. असभ्य हो, 25. वृद्धावस्था के कारण निर्बल हो, 26. नेत्रहीन हो, 27. गूंगा हो, 28. बहरा हो, 29. नेत्रहीन और वचनहीन हो, 30. नेत्रहीन और बहरा हो, 31. गूंगा और बहरा हो। इन 31 दूषणों से रहित सर्वाङ्ग शरीर वाला दीक्षा के पूर्ण योग्य होता है।32
समाहार रूप में यह कहा जा सकता है कि जैन एवं बौद्धधर्म में साधना मार्ग पर आरूढ़ होने वाले व्यक्तियों में कुछ आवश्यक योग्यताएँ होना अत्यन्त जरूरी है। संन्यास पथ को अंगीकार करने वाला व्यक्ति स्वस्थ, निरोग,परिपक्व बुद्धिवाला, विवेकशील, निर्भीक, सदाचारी, पापमुक्त, निर्व्यसनी, उच्चकुलीन इत्यादि गुणों से भी संयुक्त होना चाहिए। अयोग्य को दीक्षा देने से जिनाज्ञा का उल्लंघन, जिनशासन की अवहेलना एवं धर्म प्रभावना की हानि होती है। प्रव्रज्या ग्रहण के विभिन्न कारण __ आगार से अनगार धर्म को स्वीकार करना प्रव्रज्या है। प्रव्रज्या ग्रहण के मुख्य दो हेतु बताये गये हैं - 1. कोई व्यक्ति तीर्थङ्कर, गणधर, गुरु भगवन्त आदि की धर्मदेशना सुनकर प्रव्रजित होता है और 2. कोई जातिस्मरण ज्ञान या स्वयं संबुद्ध होकर प्रव्रज्या स्वीकार करता है। ये दोनों प्रव्रज्या धारण के मुख्य हेतु हैं। ___ जैनागमों में वैराग्योत्पत्ति के अन्य कारण भी निर्दिष्ट हैं। स्थानांगसूत्र में वैराग्योत्पत्ति के दस कारण बताये गये हैं।33 आचार्य अभयदेव ने स्थानांगवृत्ति में प्रव्रज्या लेने के निम्न दस कारणों का उल्लेख किया है34 -
1. छन्दा - अपनी या दूसरों की इच्छा से ली जाने वाली प्रव्रज्या जैसेसुन्दरी ने अपनी इच्छा से और भवदत्त ने भ्राता की इच्छा से प्रव्रज्या ग्रहण की थी।
2. रोषा - क्रोध के वशीभूत होकर ली जाने वाली प्रव्रज्या, जैसेशिवभूति ने माता द्वारा उपालम्भ दिये जाने पर प्रव्रज्या धारण की। ___3. परिघूना - दरिद्रता के कारण ली जाने वाली दीक्षा, जैसे- लकड़हारे ने क्षुधार्त होकर सुधर्मास्वामी के पास एवं एक भिखारी ने सुहस्तिसूरि के पास दीक्षा अंगीकार की थी, जो परवर्ती भव में राजा सम्प्रति के नाम से विख्यात हुआ।