Book Title: Jain Muni Ke Vrataropan Ki Traikalik Upayogita Navyayug ke Sandarbh Me
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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प्रव्रज्या विधि की शास्त्रीय विचारणा... 89 श्रवण, पुनर्वसु, तीनों उत्तरा और रोहिणी ये नक्षत्र भी शुभ कहे गये हैं। प्रव्रज्या ग्रहण हेतु सन्ध्यागत, रविगत, विड्वर, सग्रह, विलंबी, राहु और ग्रहभिन्नये सात नक्षत्र वर्जित माने गए हैं 7
दिगम्बर परम्परा में मुनि दीक्षा हेतु निम्न नक्षत्र श्रेष्ठ माने गये हैं - भरणी, उत्तराफाल्गुनी, माघ, चित्रा, विशाखा, पूर्वाभाद्रपद और रेवती तथा आर्यिका दीक्षा हेतु अश्विनी, पूर्वाफाल्गुनी, हस्त, स्वाति, अनुराधा, मूल, उत्तराषाढ़ा, श्रवण, शतभिषा और उत्तराभद्रपद नक्षत्र शुभ हैं। 58
ग्राह्य और वर्जनीय तिथियाँ विशेषावश्यकभाष्य के अनुसार दीक्षा ग्रहण के लिए चतुर्दशी, पूर्णिमा या अमावस्या, अष्टमी, नवमी, षष्ठी, चतुर्थी और द्वादशी ये तिथियाँ वर्जनीय कही गयी हैं। शेष 1, 2, 3, 5, 7, 10, 11, 13 तिथियाँ शुभ मानी गयी हैं । 59 ग्राह्य और वर्जनीय वार
हेतु ग्राह्य माने गये हैं।6°
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मंगल एवं शुक्र को छोड़कर शेष वार दीक्षा
ग्राह्य करण- शकुन - लग्नादि जैन दीक्षा के लिए बव, बालव, कालव, वणिक्, नाग और चतुष्पद ये करण, 61 गुरु, शुक्र और सोम ग्रह वाले दिवस,6± मित्र, नन्दा, सुस्थित, चन्द्र, वरुण, आनन्द और विजय ये मुहूर्त 3 तथा अस्थिर राशियों वाले लग्न उत्तम माने गये हैं। 64 साथ ही पुल्लिंग नाम वाले शकुनों में और पुरुष नाम वाले प्रशस्त, दृढ़ और बलवान् निमित्तों में दीक्षा प्रदान करनी चाहिए | 66
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इसके सिवाय विशुद्ध वर्ष, मास, वार एवं दिन देखकर, जन्म मास को छोड़कर तथा शुभलग्न में गुरु के बलवान् होने पर दीक्षा अंगीकार करवायी जानी चाहिए। शुक्र और चन्द्र उदय के पंचक में दीक्षा नहीं देनी चाहिए। ग्राह्य दिशाएँ विशेषावश्यकभाष्य के अनुसार दीक्षा
गुरु या दीक्षा स्वीकार करने वाला शिष्य पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके दीक्षा ग्रहण करें अथवा मनःपर्यवज्ञानी, चौदहपूर्वी, दसपूर्वी या नौपूर्वी मुनि जिस दिशा में विचरण कर रहे हों अथवा जिस दिशा में जिनमन्दिर हों, तीर्थ आदि निकट हों उस दिशा के सन्मुख खड़े होकर गुरु दीक्षा दें या शिष्य ग्रहण करें। 67
दिगम्बर परम्परानुसार जिस दिन ग्रहों का उपराग हो, ग्रहण हो, इन्द्रधनुष निर्मित हुआ हो, दुष्टग्रहों का उदय हो, आकाश मेघपटल से आच्छादित हो,