Book Title: Jain Muni Ke Vrataropan Ki Traikalik Upayogita Navyayug ke Sandarbh Me
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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94...जैन मुनि के व्रतारोपण की त्रैकालिक उपयोगिता नव्य युग के.....
तदनन्तर गुरु (आचार्य या पदस्थ मुनि) वासचूर्ण को अभिमन्त्रित कर दीक्षाग्राही के मस्तक पर डालें। फिर आचार्य हों तो सूरिमन्त्र के द्वारा और उपाध्याय आदि हों तो वर्धमानविद्या के द्वारा दीक्षाग्राही की केशराशि को अभिमन्त्रित कर उसे बाँध दें। फिर पुन: व्रतग्राही शिष्य के मस्तक पर वासअक्षत का क्षेपण करें।
__ तदनन्तर गुरु रजोहरण आदि वेश को अभिमन्त्रित करें, उस छाब के मध्य 5-7-9 या 25 की संख्या में सुपारी रखवायें और रक्षापोटली रखें। उसके बाद अभिमन्त्रित ओढ़ी को सौभाग्यवती नारियों के मस्तक पर रखे हुए तथा उसके दोनों ओर दो विश्वस्त व्यक्तियों के हाथों में खुली तलवारों सहित चलते हुए दीक्षाग्राही के निवास स्थान पर आयें। उस बीच वाजिन्त्रादि की मंगल ध्वनियाँ निरन्तर गंजती रहें। फिर गृहमन्दिर की पूजा करें। फिर जिनबिम्ब या शासनदेवता की प्रतिमा के आगे वेशयुक्त छाब को स्थापित कर दें। उस दिन श्रावक और श्राविकाएँ परमात्मभक्ति, गुरु के गुणगान एवं शासनदेवता के गीतपूर्वक रात्रि जागरण करें। दीक्षा दिन की विधि
गृह विधि - दीक्षा के दिन, दीक्षाग्राही के कुटुम्बीजन प्रातःकाल में महोत्सवपूर्वक गुरु महाराज के साथ चतुर्विध संघ को अपने गृहांगण में बुलायें। फिर गुरु की वस्त्रादि के द्वारा और चतुर्विध संघ की आहार-ताम्बूल आदि के द्वारा भक्ति करें।
तत्पश्चात व्रतग्राही के माता-पिता एवं बन्धु वर्ग गुरु से सचित्त भिक्षा (दीक्षाग्राही) स्वीकार करने का निवेदन करें। तब गुरु 'वर्तमान योग' कहते हुए व्रतग्राही को भिक्षा के रूप में ग्रहण करें। ___ वर्षीदान - तदनन्तर गुरु सहित विशाल जनसमूह के साथ, दीक्षार्थी गज या अश्वादि वाहन पर आरूढ़ होकर, मंगलमयी ध्वनियों के गुंजारव के मध्य वस्त्रालंकार आदि का दान देते हुए जिनालय में पहुँचे। फिर जिनबिम्ब की फलनैवेद्यादि के द्वारा द्रव्य पूजा करें और स्तुति-स्तवन आदि के द्वारा भावपूजा करें।
दीक्षा विधि प्रारम्भ - तत्पश्चात दीक्षाग्राही अक्षत से भरी हुई अंजलि सहित नमस्कारमन्त्र का स्मरण करते हुए समवसरण (त्रिगड़े) की तीन प्रदक्षिणा दें।