Book Title: Jain Muni Ke Vrataropan Ki Traikalik Upayogita Navyayug ke Sandarbh Me
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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60...जैन मुनि के व्रतारोपण की त्रैकालिक उपयोगिता नव्य युग के..... देनी चाहिए, किन्तु कोई समाधिमरण का इच्छुक हो या अनशन व्रत स्वीकार करने की भावना रखता हो तो अपवादत: वृद्ध को भी दीक्षित कर सकते हैं।22
3. नपुंसक - स्त्री और पुरुष दोनों को भोगने की अभिलाषा वाला नपुंसक कहलाता है। ___4. पुरुषक्लीब - स्त्री द्वारा भोग की याचना करने पर, स्त्री के अंगोपांग देखकर, कामोद्दीपक वचन सुनकर जो अपने आपको संयम में न रख पाये वह मनुष्य क्लीब कहलाता है।
दोष – क्लीब पुरुष को दीक्षित करने पर कदाचित तीव्र वेदोदय के कारण स्त्री का आलिंगन कर सकता है, सम्भोग आदि पापाचार भी कर सकता है, अत: यह धर्म निन्दा का कारण होने से क्लीब पुरुष को दीक्षा नहीं देनी चाहिए।
5. जड्ड - मूक व्यक्ति जड्ड कहलाता है। मूक के तीन प्रकार माने गए हैं - भाषाजड्ड, शरीरजड्ड, करणजड्ड।23 ये तीनों प्रकार के जड्ड दीक्षा योग्य नहीं होते।
भाषाजड्ड - इसके तीन प्रकार हैं -
1. जलमूक - जल निमग्न व्यक्ति की भाँति बुडबुड यानी अव्यक्त भाषण करने वाला, 2. मन्मनमूक - हकलाते हुए बोलने वाला, 3. एलकमूक - मेमने (भेड़) की तरह मिमियाने वाला।
दोष - जलमूक और एलकमूक व्यक्ति दर्शन, ज्ञान, चारित्र, तप, समिति, करण और योग के स्वरूप को समझाने पर भी नहीं समझते हैं। ये दोनों नियमत: बधिर होते हैं। उन्हें जोर से बोलकर समझाने पर उड्डाह होता है और वे जब सम्यक् ग्रहण नहीं कर पाते हैं तो क्रुद्ध होकर अधिकरण करते हैं। वस्तुत: दीक्षा का प्रयोजन ज्ञान आदि की उपलब्धि करना है जबकि पूर्वोक्त तीनों प्रकार के भाषाजड्ड ज्ञान-ग्रहण करने में असमर्थ होने से दीक्षा के अयोग्य हैं।
शरीरजड्ड - अतिस्थूल शरीर वाला व्यक्ति।
दोष - जिनका शरीर स्थूल होता है उन्हें पदयात्रा, भिक्षाटन और वन्दना करने में कठिनाई होती है। इस तरह क्रिया भेद के आधार पर इसके तीन भेद हैं- पन्थ, भिक्षा और वन्दना।
अतिस्थूल शरीर वाला होने से गोचरी गमन के लिए मुश्किल होती है, अधिक पसीना आने से शरीर, वस्त्र आदि पर फूलन जमती है, जिन्हें धोने पर जीव विराधना, संयम विराधना होती है। मार्ग में गमन करते हुए देखकर 'यह साधु बहु भक्षी है' इस प्रकार जन निन्दा होती है। अतिस्थूल होने से सर्प, अग्नि