Book Title: Jain Muni Ke Vrataropan Ki Traikalik Upayogita Navyayug ke Sandarbh Me
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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क्षुल्लकत्वग्रहण विधि की पारम्परिक अवधारणा... 17 तत्पश्चात 'नित्थार पारगो होहि' कहकर आचार्य सहित सकल संघ उसके मस्तक पर वास-अक्षत का निक्षेपण करें। तदनन्तर क्षुल्लक व्रतधारी गुर्वाज्ञा से धर्मोपदेश देने हेतु तीन वर्ष की अवधि तक विचरण करें।
दिगम्बर-साहित्य में क्षुल्लक दीक्षा से सम्बन्धित दो प्रकार की विधियाँ प्राप्त होती हैं।
प्रथम विधि के अनुसार क्षुल्लक दीक्षा के लिए उत्सुक श्रावक सिद्धभक्ति, योगिभक्ति, शान्तिभक्ति, समाधिभक्ति पढ़ें। फिर 'ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अर्हम् नमः' इस मन्त्र द्वारा 21 अथवा 108 बार जाप करें।
द्वितीय विधि के अनुसार क्षुल्लक दीक्षा के योग्य नक्षत्रों में व्रत इच्छुक को अलंकारों से सुसज्जित कर चैत्यालय में लाएँ। फिर वह अरिहन्त परमात्मा को वन्दन (स्तृति आदि) कर समस्त बांधवों एवं परिचितों से क्षमापना करें। फिर गुरु से दीक्षा दान की याचना करें। गुरु उसे योग्य समझें तो दीक्षा ग्रहण की अनुमति दें। उसके पश्चात सौभाग्यवती नारी उत्तम स्थान पर स्वस्तिक बनाकर उस पर श्वेत वस्त्र प्रच्छादित करें। फिर मुमुक्षु को पूर्वाभिमुख करके उस पर बिठायें। तत्पश्चात उपस्थित संघ की अनुमति लेकर गुरु उसका लोच करें। तत्पश्चात गुरु और शिष्य दोनों सिद्ध और योग भक्ति पढ़ें। तदनन्तर गुरु शांतिमन्त्र से गन्धोदक को तीन बार अभिमंत्रित करें तथा नवीन क्षुल्लक के मस्तक पर उसका क्षेपण करें। अपने बायें हाथ से उसके मस्तक का स्पर्श भी करें।
शान्तिमन्त्र यह है - "ॐ नमोऽर्हते भगवते प्रक्षीणाशेषकल्मषाय दिव्यतेजोमूर्तये शान्तिनाथाय शान्तिकराय सर्वविघ्नप्रणाशकाय सर्वरोगापमृत्युविनाशनाय सर्वपरकृत क्षुद्रोपद्रवविनाशनाय सर्व क्षामडामरविनाशनाय ॐ हाँ ह्रीं हूं ह्रौं हुः अ सि आ उ सा अमुकस्य .... सर्व शांतिं कुरू कुरू स्वाहा।"
तदनन्तर वर्धमानविद्या मन्त्र का उच्चारण करते हुए नवीन क्षुल्लक के मस्तक पर दही, अक्षत, गोरस, दूर्वा का निक्षेप करें। ___ वर्धमानविद्या मन्त्र यह है- "ॐ नमो भयवदो वड्डमाणस्स रिसहस्स चक्कं जलंतं गच्छाइ आयासं पायालं लोयाणं भूयाणं जये वा, विवादे वा, थंभणे वा, रणंगणे वा, रायंगणे वा सव्वजीवसत्ताणं, अपराजिदो भवदु रक्ख रक्ख स्वाहा।" __ उसके पश्चात शिष्य सिद्धभक्ति और योगिभक्ति पढ़कर व्रत ग्रहण हेतु गुरु मुख से निम्न गाथा को तीन बार उच्चरित करें