Book Title: Jain Muni Ke Vrataropan Ki Traikalik Upayogita Navyayug ke Sandarbh Me
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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24...जैन मुनि के व्रतारोपण की त्रैकालिक उपयोगिता ___ उक्त परिभाषाओं के आधार पर 'नन्दि' के मुख्य दो अर्थ माने जा सकते हैं। लौकिक दृष्टि से मंगल करने वाली, कल्याण करने वाली, प्रसन्नता देने वाली, वाञ्छित अर्थ की प्राप्ति कराने वाली क्रिया नन्दी कहलाती है तथा लोकोत्तर दृष्टि से सम्यक्दर्शन, सम्यक्ज्ञान, सम्यक्चारित्र रूप समृद्धि को प्रकट करने वाली, पाँच प्रकार के ज्ञान को प्राप्त कराने वाली एवं तद्रूप आनन्द की अनुभूति देने वाली क्रिया नन्दी कही जाती है।
केवलज्ञान आदि गुणों से युक्त तीर्थङ्कर परमात्मा की प्रतिमा को त्रिगड़े में विराजमान करना नन्दिरचना कहलाता है। योग्य स्थान की शुद्धि करना, सुगन्धित जल आदि के छिड़काव द्वारा उस भूमि को पवित्र करना तथा स्थापित जिनबिम्ब की अष्ट प्रकारी पूजा करना नन्दि विधि कहलाती है। इसे 'नांद मांडना' भी कहते हैं। इस तरह नन्दि, नन्दिरचना एवं नन्दि विधि तीनों शब्द भिन्न-भिन्न अभिप्राय के सूचक होने पर भी अर्थ में एक-दूसरे के सम्पूरक हैं।
जैन परम्परा में नन्दि के दोनों अर्थ स्वीकार किये गये हैं, किन्तु प्रसंगानुसार कोई एक अर्थ ग्रहण करना चाहिए। जहाँ नन्दि शब्द का उल्लेख हो वहाँ मंगल, आनन्द आदि अर्थ मानना चाहिए और जहाँ नन्दीपाठ या नन्दिकड्ढावणियं का निर्देश हो तो पंचज्ञान की प्राप्ति का अवबोध करना चाहिए।
__पाँच ज्ञान का प्रतिपादन करने वाला नन्दीसूत्र नन्दिपाठ कहलाता है और नन्दीसूत्र का एक अंश लघुनन्दिपाठ कहा जाता है। दीक्षा, उपस्थापना आदि व्रतारोपण एवं उपधान आदि के प्रसंग पर लगभग लघुनन्दीपाठ सुनाया जाता है और योगवहन, पदस्थापना आदि में अधिकांश बृहद् नन्दीपाठ सुनाने की परम्परा है।
व्रत ग्रहण के प्रसंग पर मतिज्ञानादि पाँच प्रकार के ज्ञान को प्राप्त करने के प्रयोजन से नन्दीपाठ सुनाते हैं, क्योंकि व्रतादि स्वीकार का चरम उद्देश्य कैवल्य प्राप्ति है एतदर्थ नन्दीसूत्र सुनाने की परम्परा रही है।
उक्त वर्णन से यह भलीभाँति सिद्ध हो जाता है कि श्वेताम्बर मूर्तिपूजक आम्नाय में नन्दिरचना आदि का महत्त्वपूर्ण स्थान है।
नन्दीरचना एक परिचय- नन्दीरचना जैन संप्रदाय में ही नहीं, बल्कि भारत की विभिन्न संस्कृतियों, धर्मों एवं जातियों में उपलब्ध है, जिसका रूप और प्रयोजन अपनी-अपनी प्रथाओं के अनुरूप थोड़ी भिन्नता लिए हुए भी मूलतः एक उत्स वाला हैं।
है।