Book Title: Jain Muni Ke Vrataropan Ki Traikalik Upayogita Navyayug ke Sandarbh Me
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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42... जैन मुनि के व्रतारोपण की त्रैकालिक उपयोगिता
जिनबिम्ब पर वासदान किसलिए? जिनप्रतिमा पर वासचूर्ण का निक्षेप उनकी त्रैलोक्य पूज्यता एवं सर्वश्रेष्ठता के प्रतीक स्वरूप तथा उनकी स्थापना के हेतु से किया जाता है।
धूपोत्पाटन किस ध्येय से? धूपोत्पाटन एवं सुगन्धित जल का छिड़काव वातावरण को सुगन्धित, मनोरम, आनन्ददायक बनाने तथा चित्त की शान्तता एवं आमन्त्रित देवी-देवताओं के सत्कार के उद्देश्य से किया जाता है।
त्रिगड़ा देवकृत समवसरण के प्रत्यक्षीकरण का संवेदक, चौमुखी प्रतिमाजी समवसरणस्थ परमात्मा के मूल स्वरूप एवं तीन प्रतिबिम्बों की सूचक तथा चन्दोवापूठिया परमात्मा के अतिशयों का प्रतीक जानना चाहिए।
इस प्रकार नन्दी-विधियों के अनेक रहस्य अनुभूत किये जा सकते हैं। आधुनिक सन्दर्भों में नन्दीरचना विधि की प्रासंगिकता नन्दीरचना एवं तद्योग्य क्रियाओं का मूल्य विविध पक्षों से आंका जा सकता है।
नन्दीरचना का मनोवैज्ञानिक पहलू भी दीर्घव्यापी है। साधक की मानसिक भूमिका के निर्माण में इसका महत्त्व काफी देखा जाता है। नन्दीरचना की पृष्ठभूमि में अरिहन्त की प्रतिमा के सामने जब व्रतों को ग्रहण किया जाता है तो उनके अनुपालन के प्रति एक अप्रतिम निष्ठा भावना और एक प्रकार की वचनबद्धता सुनिश्चित होती है । साधक के मन में दृढ़ता का भाव अधिक परिपुष्ट होता है। उसके मन में दैहिकता के प्रति विराग और सांसारिक परिस्थितिजन्य तनाव क्रमशः कम होते जाते हैं और एक अनिर्वचनीय आनन्दानुभूति के साथ वह व्रतों के ग्रहण के प्रति उन्मुख होता है। उसके भीतर के सारे प्रवाह ऊर्ध्वाभिमुख होने लगते हैं, जिससे उसका मानसिक उन्नयन प्रारंभ होता है ।
सामाजिक परिप्रेक्ष्य में यदि विचार करें तो नन्दीरचना एक सामूहिक क्रिया का प्रतीकात्मक रूप है। इसके माध्यम से व्रतादि इच्छुकों के आपस में मिलने पर स्नेह में अभिवृद्धि होती है। समाज में सुसंस्कारों का बीजारोपण एवं पल्लवन होता है। आध्यात्मिक एवं धार्मिक क्षेत्र में विकास होने से मानवीय गुणों में वृद्धि होती है। युवा पीढ़ी को उचित मार्गदर्शन प्राप्त होता है तथा वे धर्म के अभिमुख होते हैं।
वैयक्तिक स्तर पर चिन्तन करें तो व्यक्ति की आन्तरिक मलिनता दूर होती है। इसी के साथ अनावश्यक परिग्रह, कषाय, अव्रत एवं दुर्गुणों का निष्कासन