Book Title: Jain Muni Ke Vrataropan Ki Traikalik Upayogita Navyayug ke Sandarbh Me
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
View full book text
________________
प्रव्रज्या विधि की शास्त्रीय विचारणा... 55 वर्तमान में उक्त चारों प्रकारों की प्रव्रज्या धारण करने वाले साधक हैं।
इसी आगम में भाव दीक्षा के अभिप्राय से मुण्डन के दस प्रकार भी बतलाये गये हैं। यहाँ मुण्डन का बाह्य अर्थ दीक्षा है और भावत: मुण्डन दस प्रकार का होता है- 1-5. पाँच इन्द्रियजन्य विषयों का त्याग करना, 6. क्रोध मुण्ड, 7. मान मुण्ड, 8. माया मुण्ड, 9. लोभ मुण्ड और 10. शिरो मुण्ड।12 इनमें शिरो मुण्ड द्रव्यदीक्षा का भेद है। दीक्षादाता गुरु की योग्यताएँ एवं लक्षण
दीक्षादाता गुरु किन गुणों से युक्त होने चाहिए, दीक्षा दान के अधिकारी कौन हो सकते हैं? इस सन्दर्भ में लगभग आगमिक उल्लेख नहीं मिलता है। यह विवेचन स्पष्ट रूप से मध्यकालीन पंचवस्तुक आदि एवं उत्तरकालीन धर्मसंग्रह आदि में प्राप्त होता है। धर्मसंग्रह में दीक्षाप्रदाता गुरु के लिए 15 योग्यताएँ आवश्यक मानी गयी हैं13 जबकि पंचवस्तुक के अनुसार दीक्षाप्रदाता गुरु में निम्न 19 गुण होने चाहिए141. प्रव्रज्या के योग्य गुणों से युक्त- प्रव्रज्या के लिए तत्पर आत्मा के लिए
सिद्धान्त ग्रन्थों में जो गुण आवश्यक कहे गये हैं, उन गुणों से युक्त हो। 2. विधिपूर्वक दीक्षा लेने वाला - शास्त्रीय विधिपूर्वक दीक्षा ग्रहण की हो। 3. गुरुकुलवासी - गुरु चरणों की सेवा करने वाला यानी गुरु के सान्निध्य ___में रहने वाला हो। 4. गुरु का उपासक - जिसने अपने गुरु एवं वरिष्ठ साधुओं की सुन्दर ढंग
से सेवा की हो। 5. अखण्डित व्रती - दीक्षा दिन से लेकर वर्तमान तक महाव्रतों का
अखण्ड रूप से पालन कर रहा हो। 6. परद्रोहरहित - परद्रोह की भावना से रहित हो। 7. आगमाभ्यासी - शास्त्रोक्त विधिपूर्वक योगोद्वहन करके सूत्रों का
अध्ययन किया हुआ हो। 8. अति निर्मल बोधवाला - योगोद्वहन पूर्वक सूत्राभ्यास करके उनका
स्पष्ट अर्थबोध कराने में समर्थ हो। 9. विशिष्ट वेत्ता - जैन-सिद्धान्तों के परमार्थ को जानने वाला हो। 10. उपशान्त - उपशान्त स्वभाव वाला हो।