Book Title: Jain Muni Ke Vrataropan Ki Traikalik Upayogita Navyayug ke Sandarbh Me
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
View full book text
________________
अध्याय-3
नन्दीरचना विधि का मौलिक अनुसंधान
नन्दीरचना एक मांगलिक क्रिया है। सम्यक्त्वव्रत, बारहव्रत, उपधान, प्रव्रज्या, उपस्थापना, आचार्यपदस्थापना जैसे विशिष्ट अनुष्ठानों में नन्दी रचना की जाती है। प्राचीन परम्परा के अनुसार जो व्रतादि दीर्घ अवधि या यावज्जीवन के लिए अंगीकार किए जाते हैं उनसे सम्बन्धित समस्त क्रियाएँ नन्दीरचना के सम्मुख की जाती हैं। श्वेताम्बर मूर्तिपूजक आम्नाय में नन्दी रचना का अत्यधिक महत्त्व है इसलिए यह विधि इसी परम्परा में विशेष रूप से प्रचलित है। नन्दीरचना का व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ एवं स्वरूप
'नन्द' धातु और 'इन्' प्रत्यय के योग से नन्दी शब्द की उत्पत्ति हुई है। 'नन्द' धातु-हर्ष, प्रसन्नता, खुशी, आनन्दित करने वाला, प्रसन्न करने वाला आदि विभिन्नार्थक है। नन्दा शब्द सम्पन्नता, समृद्धि, खुशी, हर्ष, प्रसन्नता का सूचक है।' नन्दीसूत्र की टीका में 'नन्दी' शब्द के व्युत्पत्तिलभ्य निम्न अर्थ किये गये हैं
•
टुनदि समृद्धौ, नुमि विहिते नन्दनं नन्दि:- जो समृद्धि का प्रतीक है, वह नन्दि है| यह प्रमोद तथा हर्ष का भी द्योतक है।
• नन्दन्ति प्राणिनोऽनेनास्मिन् वेति नन्दि:- जिसके द्वारा प्राणी प्रसन्न होते हैं, वह नन्दि है । 3
जो आत्मिक आनन्दानुभूति का माध्यम है, वह नन्दि है ।
• जिसके द्वारा मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्यवज्ञान और केवलज्ञान को प्राप्त किया जाता है, वह अध्ययन विशेष भी नन्दि है ।
• अभिधानराजेन्द्रकोश के अनुसार नन्दि मंगलवाचक, पंचज्ञानसूचक' और आनन्द, प्रमोद एवं प्रसन्नता का प्रतीक है।°
• एक अन्य अर्थ के अनुसार जिस क्रिया के माध्यम से तप-संयम की आराधना में प्रसन्नता बढ़ती है, समाधि का अनुभव होता है, वह नन्दि है | 7