Book Title: Jain Muni Ke Vrataropan Ki Traikalik Upayogita Navyayug ke Sandarbh Me
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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नन्दिरचना विधि का मौलिक अनुसंधान... 37 पूजा वस्त्रधारी श्रावक रत्न, सुवर्ण और चाँदी जैसे रंग वाले तीन प्राकार बनाएं। क्योंकि तीर्थङ्कर के समवसरण में वैमानिक आदि देव अन्तर, मध्य और बाह्य ऐसे तीन प्राकार क्रमश: रत्न, सुवर्ण और चाँदी के बनाते हैं। प्रचलित परम्परा में प्राय: चाँदी या काष्ठादि से निर्मित तीन गढ़ स्थापित किये जाते हैं, जिसे त्रिगड़ा कहते हैं।
उसके बाद आचार्य 'ॐ हीं व्यन्तरदेवेभ्यः स्वाहा' इस मन्त्र से व्यन्तरदेवों का आह्वान करें। फिर व्यन्तर देवों की मानसिक कल्पना करते हुए भाव पूर्वक त्रिगड़े के द्वारादि के लिए तोरण, पीठ, देवछन्द, पुष्करिणी आदि की रचना करें। इसी क्रम में अशोकवृक्ष, सिंहासन, छत्र, चक्र, ध्वज इत्यादि की भी रचना करें।
तदनन्तर आचार्य 'ॐ ह्रीं नमोऽर्हत्परमेश्वराय, चतुर्मुखाय, परमेष्ठिने, त्रैलोक्याऽर्चिताय, अष्टदिक् कुमारीपरिपूजिताय, इह नन्द्यां आगच्छ- आगच्छ स्वाहा' इस मन्त्र से तीर्थङ्कर परमात्मा को आमन्त्रित करें। उस समय पूजा वस्त्र में श्रावक त्रिगड़े के ऊपरी भाग में चौमुखी प्रतिमा की स्थापना करें।
उसके बाद समवसरण की कल्पना करके त्रिगड़े में विराजमान जिनबिम्ब के आग्नेयकोण में गणधरों की, गणधरों के पीछे मुनियों की, मुनियों के पीछे वैमानिक देवियों की तथा उनके पीछे साध्वियों की स्थापना करें। ___ इसी प्रकार नैऋत्यकोण में भवनवासियों, व्यन्तरों तथा ज्योतिष्कों की देवियों की स्थापना करें। वायव्यकोण में भवनपति, व्यन्तर तथा ज्योतिष्क देवताओं की स्थापना करें। ईशानकोण में वैमानिकदेव और मनुष्यों की स्थापना करें। यह स्थापना भिन्न-भिन्न जाति के देवताओं के शरीर वर्ण के अनुसार करनी चाहिए। ___तदनन्तर समवसरण की पूर्ववत कल्पना करते हुए त्रिगड़े के द्वितीय गढ़ में सर्प, नेवला, मृग, सिंह, अश्व आदि तिर्यञ्च प्राणियों की स्थापना करें और तीसरे गढ़ में हाथी, मगर, सिंह, मोर आदि के आकार वाले वाहनों की स्थापना करें।
इस प्रकार नन्दीरचना सम्पन्न होने पर गुरु महाराज 'ठः ठः ठः स्वाहा' कहकर चौमुखी प्रतिमा पर वासचूर्ण डालें। इस वास निक्षेप के द्वारा प्रतिमा की स्थापना करते हैं।
दिक्पाल स्थापना - विधिवत नन्दीरचना करने के पश्चात धूप-वास आदि प्रदान करते हुए, निर्धारित मन्त्रों के द्वारा दिक्पालों का आह्वान किया