Book Title: Jain Muni Ke Vrataropan Ki Traikalik Upayogita Navyayug ke Sandarbh Me
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
View full book text
________________
20... जैन मुनि के व्रतारोपण की त्रैकालिक उपयोगिता
10. श्वेताम्बर- परम्परा में क्षुल्लक दीक्षा देते समय मुख्य रूप से नन्दीरचना, वासदान, चैत्यवन्दन, व्रतदण्डक ग्रहण, थोभवन्दन आदि कृत्य किये जाते हैं। प्रकारान्तर से दिगम्बर- परम्परा में भी अर्हत् वन्दन, गुरुवन्दन, गन्धोदक क्षेपण, प्रतिमा ग्रहण आदि कृत्य किये जाते हैं। जिस प्रकार श्वेताम्बर आम्नाय में सूरिमन्त्रादि से वासचूर्ण अभिमन्त्रित करते हैं उसी प्रकार दिगम्बर आम्नाय में शान्तिमन्त्रादि से गन्धोदक आदि को अधिवासित करते हैं।
11. आचारदिनकर के अनुसार यदि क्षुल्लक व्रत का सम्यक् प्रकार से परिपालन न कर सके तो वह पुनः गृहस्थ जीवन में प्रवेश कर सकता है, किन्तु दिगम्बर क्षुल्लक के लिए ऐसा नियम नहीं है।
-
प्रसंगानुसार दिगम्बर संघ में यति आचार पालन की तीन कोटियाँ हैं - क्षुल्लक, ऐलक एवं मुनि।
• क्षुल्लक कौपीन (लंगोटी) एवं चादर दो वस्त्र धारण करता है। प्रायः भिक्षावृत्ति से जीवन निर्वाह करता है। वह गृहस्थ पात्र में भी भोजन कर सकता है तथा मुण्डन और केशलोच दोनों करवाता है।
• ऐलक कौपीन मात्र धारण कर भिक्षावृत्ति से जीवन निर्वाह करता है । वह साधु के समान पाणिपात्र में भोजन करता है और केशलोच करवाता है ।
• मुनि एवं ऐलक में लंगोटी मात्र का अन्तर है, शेष चर्या दोनों की एक समान होती है।
उपर्युक्त विवेचन से ज्ञात होता है कि श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों परम्पराओं में क्षुल्लक लगभग मुनि की भांति जीवन चर्या बिताते हैं तदुपरान्त उन्हें बहुत कुछ सुविधाएँ प्राप्त होती हैं। श्वेताम्बर क्षुल्लक के लिए निर्दिष्ट नियम औत्सर्गिक हैं परन्तु दिगम्बर क्षुल्लक के कतिपय नियम वैकल्पिक हैं, जैसे कि वह लोच भी करवा सकता है और इच्छानुसार मुण्डन भी।
श्वेताम्बर मतानुसार क्षुल्लक तीन वर्ष तक पंचमहाव्रत एवं रात्रिभोजन विरमणव्रत का पालन करता है जबकि दिगम्बर क्षुल्लक यावज्जीवन के लिए ग्यारहवीं प्रतिमा को धारण करते हैं।
यदि उपलब्ध साहित्य की अपेक्षा विचार करें तो श्वेताम्बर मान्य आचारदिनकर में यह विधि प्राप्त होती है तथा दिगम्बर में सागारधर्मामृत, लाटीसंहिता, वसुनन्दिश्रावकाचार आदि कई ग्रन्थों में इसका वर्णन प्राप्त होता है।