Book Title: Jain Muni Ke Vrataropan Ki Traikalik Upayogita Navyayug ke Sandarbh Me
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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ब्रह्मचर्य व्रतग्रहण विधि का मार्मिक विश्लेषण ... 3
समाज को बचाया जा सकता है। परिणामतः समाज शक्ति का प्रयोग सृजनात्मक कार्यों में होता है और यही समाज प्रबन्धन का मुख्य लक्ष्य है।
ब्रह्मचर्य का मनस् केन्द्र पर अमिट प्रभाव पड़ता है जिससे मन सन्तुलित एवं कषाय नियन्त्रित होता है। ब्रह्मचारी को शीघ्र आवेश नहीं आता, क्योंकि उसकी कामोत्तेजक ग्रन्थियाँ शिथिल हो जाती है। कुण्डलिनी जागरण में भी ब्रह्मचर्य साधना उपयोगी है। इस प्रकार ब्रह्मचर्य वासना प्रबन्धन का एक मुख्य घटक है।
यदि ब्रह्मचर्य की उपादेयता वर्तमान समस्याओं के सन्दर्भ में देखी जाए तो ब्रह्मचर्य प्रत्येक क्षेत्र की समस्याओं में उपयोगी सिद्ध होता है। इससे व्यक्तिगत समस्याएँ जैसे कि तनाव, काम-वासना पर अनियन्त्रण, मन की संकीर्णता, प्रमाद, आलस्य, अनिद्रा, अतिनिद्रा आदि को नियन्त्रित किया जा सकता है, क्योंकि इसके द्वारा हमारी काफी शक्ति (Energy) का अपव्यय होने से बच जाता है तथा जीवन में समस्याएँ एवं तनाव उत्पन्न नहीं होते। अब्रह्म हमेशा विनाश का ही कारण रहा है। इतिहास के पन्नों को देखें तो रावण और कौरवों के विनाश का प्रमुख कारण यही था। अत: ब्रह्मचर्य पालन से विनाश को रोका जा सकता है। आज बढ़ते पारिवारिक तनाव, क्लेश, तलाक आदि का एक मुख्य कारण विषय लोलुपता है। समाज में बढ़ रही एड्स की बीमारी, सेक्स क्राइम, नित बढ़ रहे गर्भपात एवं लड़कियों के द्वारा की जा रही आत्महत्याएँ, बलात्कार जैसी समस्याओं के निवारण में मैथुन नियन्त्रण अत्यन्त उपयोगी है। इस प्रकार ब्रह्मचर्यव्रत की प्रासंगिकता अनेक दृष्टियों से सुसिद्ध है। ब्रह्मचर्य व्रत धारण करने का अधिकारी कौन?
ब्रह्मचर्य दुष्पालनीय एवं कठिन व्रत है। सामान्यतया रणभूमि में तीक्ष्ण खड्ग को धारण करने वाले तो अनेक हो सकते हैं, परन्तु विषयों में अनासक्त एवं धीर-गम्भीर पुरुष विरले ही होते हैं। सिंह के शक्तित्व का मर्दन करने वाले तथा हाथियों के मद को गलित करने वाले अनेक हो सकते हैं, किन्तु कन्दर्प एवं दर्प को नष्ट करने वाले सत्पुरुष विरले ही होते हैं। ब्रह्मचर्यव्रत स्वीकार करने वाले साधक के लिए कुछ योग्यताएँ अपेक्षित मानी गयी हैं।
आचारदिनकर में ब्रह्मचर्य व्रताधिकारी के लक्षण बताते हुए कहा गया है कि जो विशुद्ध सम्यक्त्वव्रत पूर्वक बारहव्रतों का पालन करने वाला हो, चैत्य