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प्रथम अहिरर : जैनकुमारसम्भव महाकाव्य का महाकाव्यत्व,
६.
वस्तु की दृष्टि से
१. आकार की दृष्टि से
आकार की दृष्टि से दण्डी, वाग्भट्ट, भोज आदि आचार्यों ने काव्य को गद्य-पद्य एवं मिश्र इन तीन भागों में विभक्त किया है।६९ भामह, वामन
और विश्वनाथ ने इस दृष्टि से श्रव्य के गद्य और पद्य ये दो ही विभाग किये है। लक्षणों के अनुसार उस पद समूह को गद्य कहते है; जिसमें छन्दोबद्धता नहीं रहती है। इस भेद के अन्तर्गत कथा, आख्यायिका आदि काव्य प्रकारों का परिगणन होता है।६२
पद्यात्मक काव्य वह होता है, जिसमें पद छन्दोबद्ध होते है।६३ जिसके छन्दों में यद्यपि विश्वनाथ ने आकार की दृष्टि से श्रव्य काव्य के गद्य एवं पद्य दो ही भेद किये है तथापि उन्होंने गद्य और पद्य दोनों में विरचित चम्पू नामक काव्य का वर्णन किया है। दण्डी ने नाटकादि को मिश्र काव्य के अन्तर्गत माना है। उनके अनुसार चम्पू भी गद्य-पद्यमयी रचना होने के कारण मिश्र काव्य है।
बन्ध की दृष्टि से
इस आधार पर दण्डी ने काव्य के सर्गबन्ध (महाकाव्य), मुक्तक, कुलक, कोश तथा संघात ये पाँच भेद किये है और उन्होंने पद्य काव्य में सर्गबन्ध महाकाव्य को मुख्य माना है।५ दण्डी ने मुक्तक, कुलक, कोश और संघात नामक पद्य काव्य में दो को उसका अंग मानकर उसका लक्षण