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तृतीय पहिरनेट :
जैनकुमारसम्भव की कथा का मूल, कथा वस्तु तथा उस पर प्रभाव
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प्रदर्शन तथा काव्यात्मक गुणों के आग्रह के कारण उच्च विन्दुओं का स्पर्श करता है।
आने पर यशस्वी रानी के
आचार्य जिनसेन ने भरत के गर्भ में पांच महास्वप्नों का वर्णन किया है
“अथान्यदा महादेवी सौधे सुप्ता यशस्वति। स्वप्नेऽपश्यन् महीं ग्रस्तां मेरूं सूर्य च सोडुपम्।। सरः सहसमब्धिं च चलद्वीचिकमैक्षत।
स्वप्नान्ते च व्यवुद्धासौ पठन् मागधनिःस्वनैः।।"३९ अथान्तर किसी समय यशस्वती महादेवी राजमहल में सो रही थीं। सोते समय उसने स्वप्न में ग्रसी हुई पृथिवी, सुमेरू पर्वत, चन्द्रमासहित सूर्य, हंससहित सरोवर तथा चञ्चल लहरों वाला समुद्र देखा, स्वप्न देखने के बाद मंगल पाठ पढ़ते हुए बन्दीजनों के शब्द सुनकर वह जाग पड़ी। उस समय वन्दीजन इस प्रकार मंगल पाठ कर रहे थे
"त्वं विवुध्यस्व कल्याणि कल्याणशतभागिनी। प्रवोधसमयोऽयं ते सहाब्जिन्या धृतश्रियः।। मुदे तवाम्व भूयासुरिमे स्वप्नाः शुभावहाः। महीमेरुदधीन्द्वर्कसरोवरपुरस्सरा।।"
अर्थात् हे दूसरों का कल्याण करने वाली और स्वयं सैकड़ों कल्याणों को प्राप्त होने वाली देवी, अब तू जाग क्योंकि तू कमलिनी के