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पश्चम,
के द्वारा अथवा विशेष का सामान्य के द्वारा जो समर्थन किया जाता है वह अर्थान्तरन्यास अलङ्कार साधर्म्य तथा वैधर्म्य से दो प्रकार का होता है।
: जैनकुमारसम्भव में रस, छन्द, अलङ्कार, गुण एवं दोष
जैनकुमारसम्भव में अर्थान्तरन्यास का अधिकाधिक प्रयोग मिलता है। रात्रि के प्रस्तुत वर्णन में कवि की कल्पना ने अर्थान्तरन्यास को इस रूप में उद्धृत किया है
तितांसति श्वैत्यमिहेन्दुरस्य, जाया निशा दित्सति कालिमानम् । अहो कलत्रं हृदयानुयायि, कलानिधीनामपि भाग्यलभ्यम् ।।
६. पर्याय अलङ्कार
" एकं क्रमेणानेकस्मिन् पर्याय: । ४९
एक क्रम से अनेक में होता है अथवा किया जाता है तब पर्यायालङ्कार होता है।
ऋषभदेव के सौन्दर्य वर्णन के अन्तर्गत इस पद्य में स्त्रियों की दृष्टि का उनके अर्थात् ऋषभदेव के विविध अंगों में क्रम से विहार करने का वर्णन होने के कारण 'पर्याय' अलङ्कार है
गुण विवेचन
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भ्रान्त्वाखिलेंगेऽस्य दृशो वशानां प्रभापयोऽक्षिप्रपयोनिंपीय। छायां चिरं भ्रूलतयोरूपास्य, भालस्थले संदधुरध्वगत्वम्॥२
काव्य-विवेचन के प्रारम्भिक काल से ही काव्य-गुणों का उल्लेख
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