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सप्तम् परिच्छेद : श्री जयशेखरसूरि कृत जैनकुमारसम्भव एवं महाकवि
प्रध्याय
कालिदास कृत कुमारसम्भव का तुलनात्मक अध्ययन
विरलविरलास्तज्जायन्ते नभोऽध्वतारकाः परिवढदृढीकराभावे बले हि कियद्वलम् ।। ५२
इसी सर्ग में प्रभात वर्णन के अन्तिम पद्य में कमल को मन्त्र साधक कामी के रूप में चित्रित किया गया है। कवि कहता है कि जैसे कामी
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अपने मनोरथ की पूर्ति के लिए नाना तन्त्र-मन्त्र का जाप करता है, उसी प्रकार कमल ने भी गहरे जल में खड़ा होकर सारी रात आकर्षण मन्त्र का जाप किया है। प्रातः काल उसने सूर्य की किरणों के स्पर्श से स्फूर्ति (शक्ति) पाकर, प्रतिनायक चन्द्रमा की लक्ष्मी का अपहरण कर लिया है; अर्थात् उसे अपनी अंक शय्या पर लिटाकर आनन्द लूट रहा है
गम्भीराम्भः स्थितमथजपन्मुद्रितास्यं निशाया
मन्तर्गुञ्जन्मधुकरमिषान्नूनमाकृष्टिमन्त्रम् । प्रातर्जातस्फुरणमरुणस्योदये चन्द्रविम्वा
दाकृष्याब्जं सपदि कमलां स्वाङ्कतल्पीचकार ।। ५३
चन्द्रोदय, सूर्योदय आदि के अन्तर्गत प्रकृति के मानवीयकरण के कवि
ने इस प्रकार प्रमाणित किया है
सुधानिधानं मृगपत्रलेखं
शुभ्रांशुकुंम्भं शिरसा दधाना । कौसुंभवस्त्रायितचान्द्ररागा,
प्राची जगन्मङ्गलदा तदाभूत । । १४
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