Book Title: Jain Kumar sambhava ka Adhyayan
Author(s): Shyam Bahadur Dixit
Publisher: Ilahabad University

View full book text
Previous | Next

Page 270
________________ सप्तम् परिच्छेद : श्री जयशेखरसूरि कृत जैनकुमारसम्भव एवं महाकवि 24 कालिदास कृत कुमारसम्भव का तुलनात्मक अध्ययन विधिना प्रतिपादयिष्यता-नववैधव्यमसह्य वेदनम्।।३ पुष्पिताग्रा अथ मदनवधूरुपप्लवान्तं व्यसनकृशा परिपालयां-वभूव। शशिनः इव दिवातनस्य लेखा किरण परिक्षयधूसरा प्रदोषम्।।" निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि जो छन्द जयशेखर ने छुआ तक नहीं है उसे कालिदास ने प्रिय छन्द के रूप में अपनाया है। वैसे दोनों ही महाकवियों ने किया है। दोनों ही महाकाव्यों ने नाट्य शास्त्रानुकूल छन्द विधान किया गया है और सर्ग के अन्त में छन्द बदल दिये गये है। इतना होने पर भी काव्य की अन्यान्य विधाओं की भाँति कालिदास का छन्दशास्त्र ज्ञान, जयशेखर सूरि की तुलना में व्यापक और प्रौढ़ है। अलङ्कार की दृष्टि से- तुलनात्मक अध्ययन करने पर ज्ञात होता है कि कालिदास जी अलङ्कार विधान में तो काव्य जगत में शीर्षस्थ थे जिसमें उनका प्रिय अलङ्कार उपमा है। 'उपमा कालिदासस्य' यह प्रख्यात् कथन उपमा अलङ्कार में शीर्षस्थ का द्योतन है। ___ श्री जयशेखरसूरि द्वारा नियोजित अलङ्कार उनके महाकाव्य के काव्य सौन्दर्य को प्रस्फुटित करते है और भाव-प्रकाशन को समृद्ध बनाते है। उन्होंने मुख्यतः शब्दालङ्कार में श्लेष, अनुप्रास और यमक का विधान किया है। सुमङ्गला की सखियों की नृत्य मुद्राओं में श्लेष "सुश्रुताक्षरपथानुसारिणी -------- स्वमार्हतम्।। २५ २५४

Loading...

Page Navigation
1 ... 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298