Book Title: Jain Kumar sambhava ka Adhyayan
Author(s): Shyam Bahadur Dixit
Publisher: Ilahabad University

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Page 283
________________ अष्टम् प्रछेद : जैनकुमारसम्भव एक प्रेरणा श्रोत काव्य मण्डन का रचनाकाल १४१९ तथा १४३२ ई० की मध्यवर्ती अवधि को माना जा सकता है। काव्यमण्डन की कथानक इस काव्य की कथा महाभारत पर आश्रित है। तथा इसकी शैली जैन कुमार सम्भव से प्रभावित है। जिसे तेरह सर्गों में विभक्त किया गया है। प्रथम सर्ग में मंगलाचरण के पश्चात् भीष्म, द्रोणाचार्य, कौरवों-वीरों तथा पाण्डव कुमारों के शौर्य एवं यश का वर्णन है। द्वितीय तथा तृतीय सर्गों में परम्परागत ऋतुओं का वर्णन है। चतुर्थ सर्ग में कौरवों द्वारा लाक्षागृह में पाण्डवों को जलाने के लिए खडयन्त्र का वर्णन है। पंचम सर्ग से सर्ग आठ तक पाण्डवों के तीर्थाटन का विस्तृत वर्णन है। सर्ग नौ में पाण्डव एक चक्रा नगरी में प्रछन्न वेश में एक दरिद्र ब्राह्मण के घर में निवास करते है तथा वहाँ भीम माता की प्रेरणा से नरभक्षी वकासुर को मारकर नगर वासियों की रक्षा करते हैं। द्रौपदी के स्वयंवर का समाचार सुनकर पाण्डव पाञ्चाल देश चल पड़ते है। सर्ग दश में स्वयंवर - मण्डप, आगन्तुक राजाओं तथा सूर्यास्त, रात्रि आदि का वर्णन है। ग्यारहवें सर्ग में द्रौपदी स्वयंवर में प्रवेश करती है। यहाँ उसके सौन्दर्य का विस्तृत वर्णन किया गया है। बारहवें सर्ग में राजा पाण्डवों को ब्राह्मण समझता है, किन्तु उनके वर्चस्व को देखकर उनकी वास्तविकता पर सन्देह करता है। दुर्योधन ब्राह्मण कुमार को अर्जुन समझकर द्रुपद को उसके विरूद्ध भड़काता है। इसी बात को लेकर दोनों में युद्ध ठन जाता है। अर्जुन अकेला ही शत्रु पक्ष को | २६६

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