Book Title: Jain Kumar sambhava ka Adhyayan
Author(s): Shyam Bahadur Dixit
Publisher: Ilahabad University

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Page 292
________________ ३८. किं कृत्रिमं खेलति नेतुरग्रे ॥ ८ / ३ ॥ साधारणः सर्ववने वसंतः ॥८/२० ॥ अब्दागमस्य को निन्दति पङ्किलत्वम् ।।८/४९ ।। को वा स्वजातौ नहि पक्षपातम् ||८ / ५२ ।। ४२. विना लता वृष्टिमिवेष्टसिद्धयः ।।९/१० ।। ४३. लज्जते वत सपत्नयन्न कः ॥ १०/२०॥ उपसंहार ३९. ४०. नवम् ४१. : परिशिष्ट एवं उपसंहार इस प्रकार भावपक्ष एवं कलापक्ष के समन्वयकर्ता महाकवि जयशेखरसूरि श्रवण परम्परा के एक श्रेष्ठ कवि हैं, जिनके सामने धर्म प्रचार का लक्ष्य विद्यमान था जिसे पूरा करने के लिए उन्होंने काव्य को माध्यम वनाया। इन्होंने अपने महाकाव्य की रचना प्रमुखतः कालिदास कृत कुमारसम्भव की प्रेरणा से की है विशेषतः परिकल्पना, कथानक के विकास एवं घटनाओं के संयोजन में दोनों में पर्याप्त साम्य है इस काव्य की शैली में जो प्रसाद तथा आकर्षण है वह भी कालिदास की शैली की सहजता एवं प्राञ्जलता के प्रभाव के कारण ही है। किन्तु चौदह स्वप्नों के सन्दर्भ में यह हेमचन्द्र के त्रिषष्टिशलाका पुरुष और जिनसेन के आदिपुराण से प्रभावित हैं। यद्यपि कुमारसम्भव पर अनेकशः शोध कार्य हुए हैं किन्तु जैनकुमारसम्भव पर विशेषतः साहित्यिक दृष्टिकोण से अभी तक शोध कार्य हुआ नहीं है अतः विभिन्न साहित्यिक दृष्टिकोण से विवेचन करने का प्रयास २७५

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