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सप्तम् परिच्छेद : श्री जयशेरक्रसूरि कृत जैनकुमारसम्भव एवं महाकवि -34EMP4 कालिदास कृत कुमारसम्भव का तुलनात्मक अध्ययन/
पूर्वोक्त वर्णनों से स्पष्ट है कि कालिदास जी भावों के वर्णन में हस्तसिद्ध है और उनका कुमारसम्भव भावों का सागर है।
महाकवि कालिदास से प्रभावित जयशेखर सूरि जी भी अपने महाकाव्य में स्पष्ट कर दिया है कि ये भी पुरुष के भावों का सूक्ष्म चित्रण के साथ नारी मनोभावों का स्पष्ट चित्रण करते है
या प्रभूष्णुरपि भर्तरि दासी
भावमावहति सा खलु कान्ता ।
कोपपंककलुषा नृषु शेषा
योषितः क्षतजशोषजलूकाः ।। २४
अर्थात् समर्थवान होते हुए भी जो स्त्री पति के प्रति दासी भाव को धारण करती है वह ही पत्नी है शेष स्त्रियाँ तो खून चूसने वाली जोंक के समान है।
पुरुष के मनोभाव वर्णन में कवि देवाधिप इन्द्र द्वारा स्वामी ऋषभदेव की स्तुति प्रसंग में इन्द्र की भक्तिभाव को पूर्ण रूपेण प्रकाशित करने में समर्थ है
तव हृदि निवसामीत्युक्तिरीशे न योग्या
मम हृदि निवसत्वं नेति नेता नियम्यः ।
न विभुरूभयथाहं भाषितुं तद्यथा मयिकुरुकरुणार्हे स्वात्मनैव प्रसादम् ।। २५
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