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पञ्चम अडिट : जैनकुमारसम्भव में रस, छन्द, अलवार, गुण एवं दोष
यथा- यथाश्रुमिररिस्त्रीणां राज्ञः पल्लवितं यशः। पल्लवित होना लतावृक्षादि का गुण है, न कि यश का किन्तु कवि ने पल्लवित होने की विशेषता को राजा के यश में निर्माजित करके समाधि गुण उत्पन्न कर दिया है।
श्लेष और ओजस
अनेक पदों का परस्पर गुम्फित होना श्लेष है और समास का वाहुल्य ओज। समास बहुला पदावली गद्य में ही शोभित होती है, पद्य में नहीं।
यथा- मुदा यस्योद्गीतं सट्ट सहचरीर्भिर्वनचरैमुर्हः श्रुत्वा हेलोद्भुतधरविभारं भुजवलम्। दरोद्गच्छद्द करनिकर दम्भात्पुलकिता
श्चमत्कारौद्रेकं कुलशिखरिपस्तेऽपि दधिरे।।२ यहाँ समस्त पद एक सूत्र में गुंथी गई मणियों के सदृश परस्पर गुम्फित हैं, अतः श्लेष गुण है।
ओज यथा
समराजिस्फुरदरिनरेशकरिनिकरशिरः सरससिन्दूरपूरपरिचयेने वारुणितकरतलो देव।।
यह गद्यांश समासबहुल होने से 'ओज' गुण का उदाहरण हैं।
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