________________
षष्ठ अलिलोद : जैनकुमारसम्भव की कलापक्षीय समीक्षा,
उपान्तपाणिस्त्रिदशेन वल्लभा, श्रमाकुलाकाचिदुदंचिकंचुका वृषस्य या चाटुशतानि तन्वती
जगाम तस्यैव गतस्य विघ्नताम्।।५८ नवविवाहित ऋषभदेव को देखने के उत्सुक पुर-नारियों की नीवी दौड़ने के कारण खुल गयी। उसका अधोवस्त्र नीचे खिसक गया। पर उसे इसका भान नहीं हुआ। वह ऋषभदेव को देखने के लिए अत्यन्त अधीरता से दौड़ती गयी और उसी मुद्रा में जन समुदाय से जा मिली
कापि नार्धयमितश्लथनीवी, प्रक्षरन्निवसनापि ललज्जे। नायकानननिवेशितनेत्रे, जन्य लोकनिकरेऽपि समेता।।५९
वर को देखने की उत्सुकता में स्त्रियों की दशाओं का वर्णन करते हुए कवि ने तत्कालीन समाज का चित्र अंकित किया है। उस समय के वधुओं का चित्रण करते हुए कवि लिखता है
शैशवावधि वधूद्वयदृष्टयो, श्चापलं यदभवङ्घरपोहम्। तत्समग्रमुपभर्तुर्विलिल्ये, ऽध्यापकान्तिक इवान्तिषदीयम्।।६०
सुमंगला और सुनन्दा की दृष्टि की चंचलता पति के सामने इस प्रकार
1२०७॥