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जैनकुमारसम्भव के समीक्षात्मक अध्ययन के अन्तर्गत भाषा, शैली, भावाभिव्यक्ति की अनूठी कल्पना आदि का प्रकाशन अभीष्ट है।
(क) भाषा की दृष्टि से समीक्षा
भाषा वह माध्यम है, जिसकी सहायता से व्यक्ति अपने आन्तरिक विचारों की आभन्भावित करता है तात्पर्म यह है कि भाषा अभिव्यक्ति का एक मात्र साधन है भाषा की सफलता उसके शब्द चयन पर आधारित है संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि थोड़े शब्दों में अधिक गम्भीर अर्थो को ग्रहण करने वाली भाषा ही सफल भाषा है।
महाकवि जयशेखर सूरि ने जैनकुमारसम्भव में ऋषभदेव के वाक्कौशल प्रसङ्ग में भाषा के गुणों के विषय में स्पष्ट संकेत किया है।
स्वादुतां मृदुलतामुदारतां, सर्वभावपटुतामकूटताम्। शंसितु तव गिरः समं विधिः, किं व्यधान्न रसनागणं मम।।'
श्री जयशेखर सूरि के अनुसार भाषा की सफलता उसकी स्वादुता, मृदुलता, सर्वभावपटुता, अर्थात् समर्थता, उदारता तथा अकूटता अथवा स्पष्टता पर आश्रित है और कवि ने भाषा के प्रयोग में अपने उपर्युक्त मतों का अधिकांशतः निर्वाह किया है।
यद्यपि जैनकुमारसम्भव, महाकाव्यों की हासकालीन रचनाओं में एक है फिर भी इसकी भाषा महाकवि माघ तथा श्री हर्ष की भाषा की भाँति