________________
पञ्चम, मविपद : जैनकुमारसम्भव में रस, छन्द, अलड्डार, गुण एवं दोष
गुण एवं दो am
जिन्होंने दस अथवा तीन से न्युनाधिक गुणों का उल्लेख किया है। इसमें अग्निपुराण, भोज, आचार्य हेमचन्द्र व जयदेव द्वारा उल्लिखित अज्ञात नामा आचार्य हैं। अग्निपुराणकार ने गुणों की संख्या १८ मानी हैं। जो शब्द अर्थ और उभयगुणों में विभाजित है। भोज ने सामान्यतः गुणों की संख्या २४ मानी है।६ जिनमें उक्त भरत सम्मट दस गुणों के अतिरिक्त उदान्तता,
और्जित्य, प्रेम, सुशब्दता, सौम्य, गांभीर्य, विस्तार, संक्षेप, संमितत्व, भाविकत्व, गति, रीति उक्ति और प्रौढ़ि- ये १४ गुण हैं।
उन्होंने २४ गुणों को वाह्य, आभ्यन्तर और वैशेषिक में विभाजित कर गुणों की संख्या ७२ स्वीकार की है; जो अन्याचार्यों की अपेक्षा सर्वाधिक है। हेमचन्द्राचार्य द्वारा उल्लिखित अज्ञातनामा आचार्य के अनुसार गुणों की संख्या ५ है- ओज, प्रसाद, मधुरिमा, साम्य और औदार्य।६७
इसी प्रकार जयदेव द्वारा उल्लिखित अज्ञातनामा आचार्य के अनुसार गुणों की संख्या है- न्यास, निर्वाह, प्रौढ़ि, औचिति, शास्त्रान्तर रहस्योक्ति व संग्रहा६८
जैनाचार्यों में सर्वप्रथम वाग्भट प्रथम ने दस गुणों का विवेचन किया है६९ जो भरतमुनि सम्मत है। प्रत्येक का सौदाहरण स्वरूप निम्न प्रकार है
औदार्य
___ अर्थ की चारुता के प्रत्यायक पद के साथ वैसे ही अन्य पदों की सम्मिलित योजना को 'उदारता' नामक गुण कहते हैं।