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चतुर्थ परिच्छेद : पात्रों का विवेचन
उपर्युक्त ग्रन्थ में नायिका को शास्त्रीय दृष्टिकोण से मुग्धा नायिका की
श्रेणी में रखा जा सकता है।
(ग) इन्द्र
इस महाकाव्य में कथा सहायक के रूप में उपस्थित इन्द्र रूपी पात्र का आगमन मुख्य कथा को आगे बढ़ाने में सहायक होता है। द्वितीय सर्ग में इन्द्र के द्वारा भगवान ऋषभदेव की स्तुति की जाती है।
"गुणास्तवाकोदधिपारवर्तिनो, मतिः पुनस्तच्वमायकी
अहो महाधाष्टर्य मियं यदीहते, जडाशया तत्क्रमणं कदाशया'
"मनोऽणु धंतु.. ..गुणामृतार्थिनी । "
सुद्रुमाद्यामुपमां स्मरंति........करोतिमाम्।।"
अनंगरूपो.. ..सुरद्रुमायसे । ।
इदं हि षटखण्डमवाष्य.......... . भूतनिग्रहे । । ९ इत्यादि
इस तरह इन्द्र द्वारा प्रभु ऋषभदेव की स्तुति करके पांचवों सर्ग के प्रारम्भ में वे ऋषभदेव की प्रसंसा करते हैं। उनसे प्रार्थना विवाह हेतु किया जाता है। ऋषभदेव के मौन धारण करने पर 'मौनं स्वीकृति लक्षणं,
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इस सिद्धान्त के अनुसार उन्हें विवाह हेतु तैयार समझकर विवाह की तैयारी किया जाता है और पुनः चौथे सर्ग में इन्द्र द्वारा भगवान ऋषभदेव के शरीर शृङ्गार का वर्णन किया जाता है और पांचवें सर्ग में इन्द्र के द्वारा प्रभु के विवाह क्रियान्वयन में सहयोग किया जाता है और उसी में इन्द्र
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