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पञ्चम सहिद: जैनकुमारसम्भव में रस, छन्द, अलङ्कार, गुण एवं दोष/
शब्दालङ्कारों में श्लेष, अनुप्रास और यमक का विधान प्रमुख रूप से किया गया है। इस काव्य में श्लेष और यमक दुरूह नहीं है।
१. अनुप्रास अलङ्कार
"वर्णसाम्यमनुप्रासः''२७
वर्गों की समानता ही अनुप्रास है।
यह छेकगत
और वृत्तिगत दो प्रकार का होता है।
“सोऽनकस्य सकृत्पूर्व:"२८ अनेक वर्णों की एक बार आवृत्ति रूप साम्य छेकानुप्रास है।
"एकस्याप्यसकृत्परः
एक वर्ण का भी और अनेक व्यञ्जनों का एक बार या बहुत बार का सादृश्य अर्थात् आवृत्ति वृत्यनुप्रास है।
जैनकुमारसम्भव में अयोध्यानगरी के वर्णन में अन्त्यानुप्रास का यह सुन्दर उदाहरण है
संपन्नकामा नयनाभिरामाः सदैव जीवत्प्रसवा अवामाः। यत्रोज्झितान्यप्रमदावलोका, अदृष्टशोकान्यविशन्त लोकाः।।
२. यमक अलङ्कार
"अर्थे सत्यर्थभिन्नानां वर्णानां सा पुनः श्रुतिः यमकम्" अर्थ होने पर भिन्नार्थक वर्णों की उसी क्रम से पुनः श्रवण या पुनरावृत्ति यमक नामक