________________ पञ्चम परिमोट : जैनकुमारसम्भव में रस, छन्द, अलङ्कार, गुण एवं दोष "शृङ्गार हास्य करुणरौद्र वीर भयानकाः। वीभत्साद्भुतसौचैत्यहटौनाट्यरसाः स्मृताः।।" अर्थात् शृङ्गार, हास्य, करुण, रौद्र, वीर, भयानक, वीभत्स और अद्भुत आठ रसों का निर्देश है। काव्याप्रकाशकार आचार्य मम्मट केवल आठ रस मानते हुए कहते है "शृङ्गार हास्य करुण रौद्र वीर भयानकाः। वीभत्साद्भुत संज्ञी चेत्यष्टौ नाट्ये रसाः स्मृताः।।२ अर्थात् शृङ्गार, हास्य, करुण, रौद्र, वीर, भयानक, वीभत्स और अद्भुत कुल आठ रस है। यह कारिका मूल रूप से भरतमुनि के नाट्यशास्त्र की कारिका है मम्मट ने उसे वहाँ से ज्यों का त्यों उतार लिया है। (क) स्थायिभाव "रतिर्हासश्च शोकश्च क्रोधोत्साहौ भयं तथा। जुगुप्सा विस्मयश्चेति स्थायिभावाः प्रकीर्तिताः।।३ इसके अतिरिक्त काव्यप्रकाशकार नवां स्थायिभाव भी माना है _"निर्वेदस्थायिभावोऽस्ति शान्तोऽपि नवमो रसः।" / इस प्रकार नौ स्थायिभाव और उनके अनुसार 1. शृङ्गार 2. हास्य 3. करुण 4. रौद्र 5. वीर 6. भयानक 7. वीभत्स 8. अद्भुत 9. शान्त ये नौ रस माने गये हैं। 126 126