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चतुर्थ पशिद : पात्रों का विवेचन
१६. समुज्जवलवेष, १७. सकलकलाकुशल, १८. सत्यवन्त, १९. प्रिय, २०. अवदान, २१. सुगन्धप्रिय, २२. सुवृत्तमन्त्र, २३. कोशसह, २४. पृदग्ध-पथ्य, २५. पण्डित २६. उत्तमसत्व, २७. धार्मित्व, २८. महोत्साही, २९. गुणाग्रही, ३०. सुपात्रग्राही, ३१. क्षमी तथा ३३. परिभावुकशचेति लौकिक इत्यादि प्रकार से वर्णन किया है।
नायिका
(ख) सुमंगला-सुनन्दा
जैनकुमारसम्भव महाकाव्य की नायिका के रूप में सुमंगला एवं सुनन्दा का वर्णन तृतीय सर्ग से लेकर एकादश साँत तक है। तृतीय सर्ग के छव्वीसवे श्लोक में इन्द्र कृत प्रभु प्रशंसा के वर्णन प्रसंग में बताया गया है कि सुमंगला का जन्म प्रभु के साथ होगा और प्रभु उसे पत्नी के रूप में स्वीकार करेंगे।
त्वयैव याऽभूत्सहभूरिभूमि- स्तमोविलास्येसुमंगलेति'।
राकेव सा केवलभास्वरस्य, कलाभृतस्ते भजतांप्रियात्वम्।।१५ सुनन्दा के अभिवृद्धि होने के विषय में कहते हैं
"अवीवृधद्यां दधदंकमध्ये, नाभिः सनाभिर्जलधेर्महिम्ना प्रिया सुनन्दापि तवास्तु सा श्री-हरेरिवारिष्टनिषूदनस्य।"
पुनः इन्द्र कहते है कि हे नाथ! मैं जानता हूँ कि इस सुमंगला
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