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चतुर्थ परियट : पात्रो का विवेचन
ज्योत्सना रूप सार का उपभोग किया गया ऐसे अमृत के समान किरणों वाले चन्द्रमा को मुख में प्रवेश करते हुए उस सुमंगला ने
देखा।२७
जो लोक के समस्त अंधकार को दूर करने वाले हैं और अंधकार को गुफाओं के गहवर में फेकते हुए, कमल के वनों के संकोच को त्याग कराते हुए या खिलाते हुए घूक के समान दृष्टि प्रदान करते हुए तारकावली से लिए गये प्रकाश को दिशाओं में स्थापित करते हुए, कमल की कान्ति चुरा लेने वाले ऐसे सूर्य को सुमंगला ने स्वप्न में स्मरण
किया।२८
जिसने अखण्ड रूप से दण्ड के द्वारा बाँधे जाने पर भी अपनी स्वाभाविक चंचलता को नही छोड़ा, क्षुद्र घंटिकाओं द्वारा क्वणन शब्द की घोषड़ा के समान मानों शब्द करते हुए, रज के भय के कारण मानों आकाश में अपना स्थान बनाने वाले पताकाओं ने सुमंगला की प्रीति रूप नर्तकी को नचाने के निमित्त रंगमंच के आचार्य या रंगाचार्य का आचरण
किया।२९
मुख पर धारण किये गये कमल में स्थित भवरों के शब्द के वहाने मानों प्रीति को उत्पन्न करते हुए स्त्री समूह के द्वारा मस्तक भाग में धारण करने के विषय में संसार के लोग जिसके साक्षी हैं समृद्धि के अपहारक अर्थात् (कुम्भ द्वय को) हृदय में धारण करते हो, ऐसे कुम्भ