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चतुर्थ अहिद : पात्रों का विवेचन
को उस सुमंगला ने (स्वप्न में) देखा।३०
कमल के सुगन्ध से युक्त पक्ष में- लक्ष्मी जिसमें प्रसन्न होती थी, अनेक पक्षियों के द्वारा शब्दायमान पक्ष में- अनेक कवियों के द्वारा कहे गये गीत आदि द्वारा विस्तारित कीर्ति वाले वृत्ताकार (वृक्षों के) पंक्तिवाला, उपभोग योग्य वृक्षों के आश्रय वाला, पक्ष में- सुन्दर वर्ण वाले चमकते हुए तरङ्ग समूह के द्वारा विश्व का उपकार करने वाले ऐसे व्यवहार गृह के समान सरोवर को उस सुमंगला ने देखा।
वायु के द्वारा उठाये गये बड़ी-बड़ी तरङ्गों के द्वारा जहाँ पर्वत नीचे कर दिये गये थे पृष्ठ भाग को ऊपर उठाने के कारण जहाँ पाटीन नामक विशेष प्रकार के मछलियों के द्वारा द्वीप का भ्रम उत्पन्न कर दिया गया था कहीं-कहीं त्रिप्ति मेघों के द्वारा पानी पिया जा रहा था ऐसे समुद्र को उस मृगाक्षी सुमंगला ने देखकर विष्मय को प्राप्त हुई।३२
मानों उसमें से सूर्य विम्ब प्रकट हो रहा हो तथा वह तेज का जन्म स्थान और रत्नाचल के समान चलनशील हो मानों उसके भार से स्वर्ग च्युत हो रहा हो, देवताओं की स्त्रियाँ जिसमें खेल करती हुई रत्नों की भित्ति जिसके प्रकाश मय किरणों से अंधकार दूर फेंक दिया जाता हो तथा आकाश में लग्न या नक्षत्र की तरह शुशोभित होने वाले। ऐसे विमान को उस सुमंगला ने (स्वप्न में) अपनी नेत्रों का अतिथि बनाया या दर्शन
किया।३३
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