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तृतीय रियो ।
जैनकुमारसम्भव की कथा का मूल, कथा वस्तु तथा उस पर प्रभाव
पुरुष रहते हैं ऐसा यह हिमवत् पर्वत से लेकर समुद्र पर्यन्त का चक्रवर्तियों का क्षेत्र उसी 'भरत' पुत्र के नाम के कारण भारत वर्ष के नाम से प्रसिद्ध है।
"तन्नाम्ना भारतं वर्षमिति हासीज्जनास्पदम्।
हिमाद्रे रासमुद्राच्च क्षेत्रं चक्रभृतामिदम्।।३" इस प्रकार आदि पुराण में 'भरत' के जन्म तथा बड़ा होकर उसके चक्रवर्ती होने का वर्णन है। किन्तु जैनकुमार सम्भव में कुमार जन्मादि का वर्णन नहीं है।
त्रिषष्ठिशलाका पुरुष का प्रभाव
आचार्य हेमचन्द्र विरचित त्रिषष्ठिशलाकापुरुषचरित से भी जैनकुमारसम्भव पूर्णतः प्रभावित प्रतीत होता है। त्रिषष्ठिशलाकापुरुषचरित में ऋषभचरित का अनुपात से हीन, किन्तु सरस वर्णन किया गया है, हेमचन्द्र ने, जिस प्रकार ऋषभदेव चरित का प्रतिपादन किया है", उसमें जिन जन्म के प्रस्तावना स्वरूप मरुदेवी के स्वप्न दर्शन-सहित ऋषभदेव के पूवार्द्ध में आदि पर्व के द्वितीय सर्ग के लगभग पांच सौ श्लोकों का निगरण कर लिया है। जयशेखर ने कथानक के पल्लवन तथा प्रस्तुतीकरण में कतिपय अपवादों को छोड़कर बहुधा त्रिषष्ठिशलाकापुरुषचरित का अनुगमन किया है। दोनों में इतना आश्चर्यजनक साम्य है कि जैन कुमार सम्भव त्रिषष्ठिशलाका के आदि पर्व को सामने रखकर लिखा गया प्रतीत होता है। वस्तुत: जयशेखर ने कथानक