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। परिच्छेद्र :
मरमान
जैनकुमारसम्भव की कथा का मूल, कथा वस्तु तथा उस पर प्रभाव
करना है किन्तु जिस प्रकार कुमार सम्भव के प्रामाणिक अंश (प्रथम आठ सर्ग) में कार्तिकेय का जन्म वर्णित नहीं है वेसे ही जैन कवि के महाकाव्य में भी भरत कुमार को जन्म का उल्लेख कही नहीं हुआ है। किन्तु आदिपुराण के पञ्चदर्श पर्व के १४०वें श्लोक में पुत्र (भरत) के जन्म का वर्णन हैं
नवमासेष्वतीतेषु तदा सा सुषवे सुतम्। प्राचीवाकं स्फुरत्तेजः परिवेषं महोदयम्।।
और भगवान वृषभदेव के जन्म समय में जो शुभ दिन, शुभ लग्न शुभ योग, शुभ चन्द्रमा और शुभ नक्षत्र आदि पड़े थे वे ही शुभ दिन आदि उस समय भी पड़े थे अर्थात् उस समय, चैत्र कृष्ण नवमी का दिन, मीन लग्न ब्रह्मयोग, धनु राशि का चन्द्रमा और उत्तराषाढ़ा नक्षत्र था। उसी दिन महादेवी ने सम्राट के शुभ लक्षणों से शोभायमान ज्येष्ठ पुत्र उत्पन्न किया था। वह पुत्र अपनी दोनों भुजाओं से पृथिवी का आलिंगन कर उत्पन्न हुआ था इसलिए निमित्तज्ञानियों ने कहा था कि वह समस्त पृथिवी का अधिपति अर्थात् चक्रवर्ती होगा। इस प्रकार उस पुत्र का नाम
भरत रखा गया।
प्रमोदभरतः प्रेम निर्भरा वन्धुता तदा तमाहृद् भरतं भावि समस्तभरताधिपम्।।
तथा इतिहास के जानने वालों का कहना है कि जहाँ अनेक आर्य