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तृतीय पति
ट
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जैनकुमारसम्भव की कथा का मूल, कथा वस्तु तथा उस पर प्रभाव/
समान शोभा धारण करने वाली है- इसलिए यह तेरा जागने का समय है। तात्पर्यतः जिस प्रकार यह समय कमलिनी के जागृत-विकसित होने का है, उसी प्रकार तुम्हारे जागृत होने का भी है। हे मातः पृथिवी, मेरु, समुद्र, सूर्य, चन्द्रमा और सरोवर आदि जो अनेक मंगल करने वाले शुभ स्वप्न देखे है वे तुम्हारे आनन्द के लिए हों।
इत्यादि विभिन्न प्रकार से वन्दीजनों द्वारा तीव्र स्वरों से मंगल पाठ किये जाने से वह यशस्वती महादेवी जगाने वाले दुन्दुभियों के शब्दों से धीरे-धीरे निद्रारहित हुई और शय्या छोड़कर प्रातः काल का मंगल स्नान कर प्रीति से रोमांचित शरीर हो अपने देखे हुए स्वप्नों का यथार्थ फल पूछने के लिए भगवान् वृषभदेव के समीप पहुँचकर निवेदन किया। तदन्तर दिव्य नेत्रों वाले भगवान वृषभदेव ने उन स्वप्नों का फल इस प्रकार
कहा
"त्वं देवि पुत्रमाप्तासि गिरीन्द्राचक्रवर्त्तिनम्। तस्य प्रतापितामर्कः शास्तीन्दुः कान्ति संपदम्।। सरोजाक्षि सरोदृष्टेरसौ पङ्कजवासिनीम्। वोढा व्यूढोरसा पुष्यलक्षणाङ्कितविग्रहः।। महीग्रसनतः कृष्स्नां महीं सागर वाससम्। प्रतिपालयिता देवि विश्वराट् तव पुत्रकः।। सागराच्चरमाङ्गोऽसौ तरिता जन्मसागरम्।