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द्वितीय चुदिर
जैनकुमारसम्भवकार की जीवन वृत्त, कृतियाँ तथा जैन काव्य साहित्य की तत्कालीन परिस्थितियाँ एवं प्रेरणाएं
(ङ) धार्मिक उदारता, निष्पक्षता एवं सहिष्णुता
साहित्य सेवा के क्षेत्र में जैनाचार्यो की नीति निष्पक्ष तथा धार्मिक उदारता से प्रेरित थी। उन्होंने अनेक कृतियाँ इन भावनाओं से प्रेरित होकर भी लिखी और पढ़ी तथा उनका संरक्षण किया। इस तरह हम देखते हैं कि अमरचन्द्रसूरि ने वायडनिवासी ब्राह्मणों की प्रार्थना पर 'बालभारत' की तथा नयचन्द्रसूरि ने 'हम्मीरमहाकाव्य' की रचना की। माणिक्यचन्द्र ने काव्यप्रकाश पर संकेत टीका लिखी तथा अनेक जैनेतर महाकाव्यों पर जैन विद्वानों ने प्रामाणिक टीकाएँ लिखी तथा अनेक जैनेतर काव्यग्रन्थों-पंचतन्त्र, वेतालपंचविंशतिका, विक्रमचरित, पंचदण्डछत्रप्रबन्ध आदि का प्रणयन किया। इतना ही नहीं, उनकी उदार साहित्य सेवा से प्रभावित हो अन्य धर्म और सम्प्रदाय के लोग उनसे अभिलेख साहित्य का निर्माण कराकर अपने स्थानों में उपयोग करते थे। यथा- चित्तौड़ के मोकलजी-मन्दिर के लिए दिगम्बराचार्य रामकीर्ति (वि०सं० १२०७) से प्रशस्ति लिखाई गई थी। इसी तरह राजस्थान की सुन्ध पहाड़ी के चामुण्डा देवी के मन्दिर के लिए वृहदच्छीय जयमंगलसूरि से और ग्वालियर के कच्छवाहों के मन्दिर के लिए यशोदेव दिगम्बर से और गुहिलोत वंश के घाघसा और चिर्वा स्थानों के लिए रत्नप्रभसूरि से शिलालेख लिखाये गये थे।
जैनकवियों की समालोचना
मानव हृदय में अनादि काल से विद्यमान आसुरी वासना के समूल '