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तृतीय परिच्छेद :
जैनकुमारसम्भव की कथा का मूल, कथा वस्तु तथा उस पर प्रभाव
जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति में भी किया गया है।
श्री ऋषभदेव के जीवन वृत्त के दो प्रमुख स्रोत हैं- जिनसेन का आदिपुराण (नवीं शताब्दी) तथा हेमचन्द्र का त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (बारहवीं शताब्दी) इन उपजीव्य ग्रन्थों के फलक पर भिन्न-भिन्न शैली में ऋषभ का चरित अंकित है। त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित में सुमङ्गला के चौदह स्वप्नों तथा उनके फलकथन का क्रमशः एक-एक पद्य में सूक्ष्म संकेत है। श्री जयशेखरसूरि इस प्रसंग का निरूपण लगभग दो सर्गों में किया है। हेमचन्द्र
और जयशेखर के मुख्य वृत्त का यह एक महत्त्वपूर्ण अन्तर है। किन्तु जयशेखर को इसकी प्रेरणा निःसन्देह हेमचन्द्र द्वारा वर्णित मरुदेवी के स्वप्नों तथा फलकथन से मिली थी।
यद्यपि यह सत्य प्रतीत होता है कि उपर्युक्त ग्रन्थ जैनकुमारसम्भव के आधार ग्रन्थ रहे है, किन्तु कालिदासीय कुमारसम्भव एवं जैन कुमारसम्भव के सूक्ष्म पर्यवेक्षण से यह निर्विवाद तथ्य प्रकट होता है कि जैन कुमारसम्भव भाव, . कथानक की कल्पना, वस्तु वर्णन आदि दृष्टियों से कुमारसम्भव पर पूर्णरूपेण आश्रित है और कवि जयशेखर सूरि महाकवि कालिदास के अत्यधिक ऋणी है।
जैनकुमारसम्भव एवं उससे सम्बन्धित अन्य रचनाएं जैनकुमारसम्भव की कथावस्तु (सर्गानुसार)
जैनकुमारसम्भव ग्यारह सर्गों का महाकाव्य है और इसमें आदि