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तृतीय अधिोन
जैनकुमारसम्भव की कथा का मूल, कथा वस्तु तथा उस पर प्रभाव/
में भाग लेने आता है फलस्वरूप यह स्थान स्वर्ग भूमि के अतिथि रूप में सुशोभित होता है।'२ इसी में ऐरावत हाथी का वर्णन है।
चतुर्थ सर्ग के उत्तरार्द्ध एवं पञ्चम सर्ग के पूर्वार्द्ध में तत्कालीन वैवाहिक परम्पराओं का सजीव चित्रण है।१३ स्वामी जी विवाहोपरान्त एक विजयी सम्राट की तरह घर वापस होते है। यहीं पर दश पद्यों में उन्हें देखने के लिए आतुर पुर-सुन्दरियों के संभ्रम का अत्यन्त सुरुचिपूर्ण वर्णन है।५ और इसी सर्ग में स्वामी जी वधुओं के शयन गृह में तत्वान्वेषी की भाँति प्रविष्ट होते है।६ सर्ग के अन्त में सुमङ्गला के गर्भधारण का संकेत इस रूप में दृष्टिगत होता है
कौमार केलि कलनाभिरमुष्यपूर्वलक्षाः षडेकलवतां नयतः सुखाभिः। आद्या प्रिया गरभमेणदृशामभीष्टं,
भर्तुः प्रसादमविनष्वरमाससाद।। सप्तम सर्ग में सुमङ्गला के द्वारा देखे गये चौदह स्वप्नों का वर्णन है।८ जिसका फल जानने के लिए वह स्वामी जी के वास-गृह में जाती है।९
सर्ग आठ में ऋषभदेव सुमङ्गला के असामयिक आगमन के सम्बन्ध में नाना प्रकार के तर्क करते हैं और स्वप्नों के विषय में अन्तर्मन से विचार करते है।०