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द्वितीय पुरिटरेट : जैनकुमारसम्भवकार की जीवन वृत्त, कृतियाँ तथा A
जैन काव्य साहित्य की तत्कालीन परिस्थितियाँ एवं प्रेरणाएं
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इस राजनीतिक स्थिति का प्रभाव जैन काव्य साहित्य पर विविध रूप से पड़ा और पांचवी शती ईस्वी से अनवरत जैन काव्य साहित्य का निर्माण होता रहा।
(ख) धार्मिक परिस्थितियाँ
गुप्तकाल से अबतक भारत में धार्मिक परिस्थिति ने अनेक करवटें बदली हैं। गुप्तकाल में एक नवीन ब्राह्मण धर्म का उदय हो रहा था जिसका आधार वेदों की अपेक्षा पुराण अधिक माने जाते थे। ब्राह्मणधर्म में नाना अवतारों की पूजा और भक्ति की प्रधानता थी।
गुप्त नरेश स्वयं भागवत धर्मानुयायी अर्थात् विष्णु पूजक् थे परन्तु वे बड़े ही धर्मसहिष्णु और अन्य धर्मों को संरक्षण देने वाले थे। बौद्ध धर्म के महायान सम्प्रदाय का गुप्त राज्यों के संरक्षण में अच्छा प्रचार था। पूर्व में नालन्दा और पश्चिम में वल्लभी बौद्धधर्म के नये केन्द्रों के रूप में विकसित हो रहे थे। जैन धर्म भी विकसित स्थिति में था। वल्लभी में देगर्धिगणि क्षमाश्रमण ने जैनागमों का पांचवी शताब्दी में संकलन किया था। इस युग की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि विभिन्न धर्मों में परस्पर आदान-प्रदान और संमिश्रण अधिक मात्रा में बढ़ने लगा था। जैन तीर्थंकर ऋषभदेव और भगवान बुद्ध हिन्दू अवतारों में गिने जाने लगे थे। उस समय के अनेक धार्मिक विश्वासों में उलट-पुलट हो रही थी, धार्मिक जीवन में विधर्मी तत्त्वों का प्रवेश होने लगा था और एक ही कुटुम्ब