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प्रथम मतिरछेद : जैनकुमारसम्भव महाकाव्य का महाकाव्यत्व"
देवादि के वृत्त से सम्बद्ध (ख्यात वृत्त), (२) कल्पित वस्तु से सम्बद्ध (३) कलाश्रित (४) शास्त्राभित। रुद्रट ने काव्य के लिए 'प्रबन्ध' शब्द का प्रयोग किया है और वस्तु के आधार पर प्रथमतः उत्पाद्य और अनुप्राद्य भेद करके पुनः दोनों के महान और लघु ये दो भेद किये है।६
भोज ने वर्ण्य विषय के आधार पर श्रव्य काव्य के काव्य, शास्त्र, इतिहास आदि छः भेद किये है। वर्गीकरण के अन्य आधार
स्वरूप विधान की दृष्टि से भामह
ने काव्य के पाँच भेद बताये
सर्गवन्ध अभिनेयार्थ कथा
३.
आख्यायिका अनिवद्ध
इस प्रकार भामह ने श्रव्य और दृश्य काव्य को समेटने का प्रयास किया है। दृश्य काव्य के लिए 'अभिनेयार्थ' संज्ञा प्रयुक्त कर उन्होंने पाँच भेदों का उल्लेख किया है।
१. नाटक २. द्विपदी
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