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प्रथम अडिसद : जैनकुमारसम्भव महाकाव्य का महाकाव्यत्व,
न करते हुए मात्र महाकाव्य का विस्तृत लक्षण दिया है।६६
अग्निपुराण६७ में पद्य काव्य के महाकाव्य, कलापक, पर्यायबन्ध, विशेषक, कुलक, मुक्तक तथा कोष इस सात भेदों का उल्लेख किया गया है। विश्वनाथ ने बन्ध की दृष्टि से पद्य काव्य के महाकाव्य (सर्गबन्ध), खण्डकाव्य, मुक्तक, युग्मक, सान्दानितक, कलापक, कुलक आदि भेदों के अतिरिक्त काल एवं कोषनामक काव्य भेदों का उल्लेख किया है।६८
३. भाषा की दृष्टि से
इस दृष्टि से भी कतिपय विद्वानों ने काव्य का वर्गीकरण किया है। परन्तु यह विभाजन युक्तियुक्त नहीं है क्योंकि इस आधार पर विरचित समस्त काव्य जगत एक काव्य प्रकार मान लिया जायेगा तब तो साहित्य जगत के किसी भी काव्य प्रकार का बोध नहीं होगा। इससे तात्पर्य यह निकलता है कि संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश और मिश्र भाषाओं के अतिरिक्त किसी अन्य भाषाओं ने विरचित साहित्य काव्य जगत् से बाहर हो जायेगा।
४. अर्थ की रमणीयता की दृष्टि से
इस दृष्टि से आचार्य मम्मट ने काव्य के तीन भेद किये है१. उत्तम काव्य६९ (ध्वनि काव्य) २. मध्यम काव्य (गुणीभूत० काव्य) ३. चित्र काव्यर (अवर काव्य)।
आनन्दवर्धनर ने इस आधार पर काव्य को दो प्रकार का माना है१. वाच्य, २. प्रतीयमान। जिस काव्य में वाच्यार्थ की अपेक्षा व्यंग्यार्थ अधिक