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प्रथम
अ
नातिस्वल्पा
नानावृत्तमय:--
सर्गाक्त
संध्या
प्रातर्मध्या
संभोग
रणप्रथा
वर्णनीया -
कर्णेवृत-
नामास्य
अस्मिन्नार्षे
प्राकृतेनिर्मते-
छन्दसां
अपमृदा-
तथापभृ
भाषा - विभाषा
एकार्थ प्रवेणे
: जैनकुमारसम्भव महाकाव्य का महाकाव्यत्व
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विश्वनाथ कृत साहित्य दर्पण परि०-६
इसके अतिरिक्त आचार्य रुद्रट ने अपने ग्रन्थ 'काव्यालङ्कार' १२४ में भोजराज
ने अपने ग्रन्थ सरस्वती 'कण्ठाभरण' १२५ में महाकाव्य के लक्षणों का उल्लेख
किया है।