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द्वितीय परिच्छेद : जैनकुमारसम्भवकार की जीवन वृत्त, कृतियाँ तथा 24
जैन काव्य साहित्य की तत्कालीन परिस्थितियों एवं प्रेरणाएं
जैनों के काव्य साहित्य की उपलब्ध सामग्री के आधार पर हम कह सकते हैं कि उसका निर्माण ईसा की पाँचवीं शती से प्रारम्भ हो गया था। राजनीतिक दृष्टि से यह गुप्तवंशी राज्यसत्ता के अस्त का काल था। उत्तर भारत में सन् ४५० के लगभग हूणों का आक्रमण हुआ फलस्वरूप भारत में केन्द्रीय शासन का अभाव हो गया और वह अनेक स्वतन्त्र संघर्षरत राज्यवंशों में विभक्त हो गया। यह स्थिति प्राय: अंग्रेजी शासन स्थापित होने के पूर्व तक बराबर बनी रही।
(क) राजनीतिक परिस्थितियाँ
जैनधर्म ने गुप्तकाल के समय या उससे कुछ पूर्व पश्चिम और दक्षिण भारत को अपने विशिष्ट कार्य-कलापों का केन्द्र बनाया। वैसे जैनधर्मानुयायी मध्यकाल में बंगाल विहार, उड़ीसा और उत्तरप्रदेश के कतिपय स्थानों में बराबर बने रहे पर उनकी तत्कालीन साहित्यिक गतिविधियों का हमें कोई पता नहीं। मध्यकाल में मालवा, राजस्थान, उत्तरी गुजरात तथा दक्षिण भारत के कर्नाटक आदि प्रान्तों में जैनधर्म का अच्छा समादर रहा और अपने साहित्यिक कार्यकलापों में उन्हें जैन जनता के अतिरिक्त राज्यवर्ग से संरक्षण और प्रेरणा मिलती रही। दक्षिण के पूर्व मध्यकालीन राज्यवंशों जैसे गंग, कदम्ब, चालुक्य और राष्ट्रकूटों ने और उनके अधीन अनेक सामन्तों, मन्त्रियों और सेनापतियों ने जैनधर्म को आश्रय ही नहीं दिया बल्कि वे जैन विधि से चलने के लिए प्रवृत्त भी
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