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प्रथम निरपेद्र : जेनकुमारसम्भव महाकाव्य का महाकाव्यत्व,
विश्वनाथ और रुद्रट आदि प्रमुख है। अग्निपुराण में महाकाव्य का लक्षण इस प्रकार मिलता है- महाकाव्य सर्गवन्ध रचना है, इसमें विभिन्न वृत्तों की योजना है तथा इतिहास प्रसिद्ध अथवा किसी सज्जन के जीवन पर आश्रित कथानक वर्णित होता है। इसमें विभिन्न छन्दो-शक्वरी, अतिशक्वरी, जगती, अतिजगती, त्रिष्टुप, पुष्पिताग्रादि का प्रयोग होता है। उसमें नगर, वन, पर्वत चन्द्र, सूर्य, आश्रम, उपवन, जलक्रीड़ा, आदि उत्सवों का वर्णन तथा समस्त रीतियों, वृत्तियों
और रसों का समावेश होता है। उक्ति वैचित्रय की प्रधानता होने पर भी जीवित प्राण रूप में रस की नियोजना होती है।२१ विश्वविख्यात् नायक के नाम से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति दिखाई जाती है। आचार्य हेमचन्द्र ने अपने ग्रन्थ 'काव्यनुशासन' में महाकाव्य के लक्षणों को शब्द वेचित्र्य, अर्थवैचित्र्य और उभयवैचित्र्य से विभूषित किया है। उनका महाकाव्य लक्षण इस प्रकार है। शब्द वैचित्र्य के अन्तर्गत उन्होने- असंक्षिप्त ग्रन्थत्व, अविषयवन्धरवादि, आदि नमस्कार, वस्तु निर्देशादि उपक्रम, कवि प्रशंसा, दुर्जन, सुजनादि का स्वरूप निर्देश, दुष्कर चित्रादि सर्गत्व आदि का निर्देश किया है।१२२ अर्थ वैचित्र्य के अन्तर्गत उन्होने चतुवर्ग (धर्म, अर्थ काम और मोक्ष) की प्राप्ति चतुरोदात्तनायक, रसभावों की योजना, सूत्र संविधान, नगर, आश्रम, शैल सेना आवास, मन्त्र दूत प्रयाण, संग्राम, वन विहार, जल क्रीडा, मधुपान नानाथगम, रतोत्सवादि के वर्णन का निर्देश किया है। और उभयवैशिष्ट्य में रसानुरूप संदर्भ, अर्थानुरूप छन्द, समस्त लोकरंजकता, देश काल पात्रों की क्रियाये तथा गौण या अवान्तर कथाओं की योजना का निर्देश किया है।