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प्रथम मुस्छेिद : जैनकुमारसम्भव महाकाव्य का महाकाव्यत्व
निष्पन्न होता है। आचार्य धनिक ने 'वीथी' पद का निर्वचन करते हुए लिखा है कि वीथी के समान होने के कारण यह वीथी कहलाती है।०७ वीथी के अर्थ-मार्ग, श्रेणी, पंक्ति। नाट्यदर्पणकार'०८ के अनुसार वत्योक्ति मार्ग से जाने से वीथी को इसलिए वीथी कहा जाता है कि क्योंकि इसमें नाना रसों की माला (पंक्ति) रुप में स्थिति होती है यह विश्वनाथ०९ का मत है। ९. उत्सृष्टांक
अभिनवगुप्त उत्सृष्टिकांक पद का निर्वचन करते हुए कहते है कि जिसकी सृष्टि अर्थात् जीवित (प्राण) उत्क्रमणीय हो, ऐसी शोकग्रस्त स्त्रियां उत्सृष्टिका कहलाती हैं, उससे अंकित रुपक भेद उत्सृष्टिकांक कहलाता है। इस पद-निर्वचन से यह सिद्ध होता है कि इस रूपक भेद में शोकाकुल स्त्रियों की कथा निवद्ध की जाती है।९० धनंजय ने रुपकों के परिगणन के समय तो इसे 'अंक' कहा है। और लक्षण कथन के पूर्व भी 'अंक' परन्तु लक्षण में स्पष्ट रूप से उत्सृष्टिकांक कहा है।१२
'नाट्यदर्पणकार थोड़े शब्द परिवर्तन के साथ (उत्सृष्टिकांक) पर की अभिनवगुप्त, जैसी ही व्याख्या करते है।५३ १०. ईहामृग
ईहामृग शब्द का निर्वचन करते हुए आचार्य अभिनवगुप्त कहते हैईहा चेष्टा मृगस्येवस्त्रीमात्रयोयत्र अर्थात् जिस रुपक भेद में मृग की भांति केवल स्त्री प्राप्ति हेतु चेष्टा हो, उसे ईहा मृग कहते है।१४ अभिनवगुप्त ने यह स्पष्ट नही किया है कि स्त्री प्राप्ति के लिए चेष्टा किसके द्वारा होती है? इस जिज्ञासा का समाधान आचार्य धनिक द्वारा हो जाता है। उनका कहना है 'मृगवदलभ्यां