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प्रथम
३. भाण
: जैनकुमारसम्भव महाकाव्य का महाकाव्यत्व/
प्रकरण में वस्तु, नायक तथा अन्य पात्रों की रचना कवि अपनी मौलिक कल्पना से करता है । ९४ जो प्रकरण को नाटक से भिन्न बनाती है। प्रकरण का नायक ब्राह्मण, मन्त्री या वैश्य इनमें से कोई एक होता है। धनञ्जय विश्वनाथ आदि के अनुसार इसका नायक धीर शान्त प्रकृति का होता है ५ परन्तु नाट्यदर्पणकार इस मत से सहमत नहीं है । ९६ वे उसका नायक धीरोदात्त तथा धीर प्रशान्त दोनों को मानते हैं।
'भष्' धातु से 'घञ्' प्रत्यय जोड़ने पर 'भाण' शब्द निष्पन्न होता है। जो अभिनव गुप्त के मत में भाण का निर्वचन है, चूंकि इसमें एक ही पात्र के द्वारा (रंगमंच पर ) अप्रविष्ट भी पात्र विशेष उक्तिमान् (बोलते हुए की भांति) चित्रित किये जाते हैं, अतः उसे भाण कहते है । ९७
धनिक की दृष्टि में इस रूपक भेद का नाम भाण इसलिए रखा गया है कि उसमें वाचिक अभिनय की प्रधानता रहती है। भारती वृत्ति शब्द वृत्ति है और उसमें वाचिक अभिनय की प्रधानता होती है। विशेषतः वाचिक व्यापार (भंजन) के कारण ही यह रूपक भेद 'भाण' कहलाता है।"
प्रतापरुद्रीय की रत्नापणा टीका के अनुसार इस रूपक भेद का नाम 'भाण' इसलिए है", क्योंकि इसमें एक ही बिट स्वकृत अथवा परकृत का भणन (वर्णन) करता है । १००
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