________________
३२
ग्रही न बने | संग्रह खोरी करके अन्यों के अधिकारों पर कब्जा न जमाये | दहेज न ले, आदि नियमो का पालन करता हुआ जीवन यापन करे । क्रमशः अणुक्तो से महात्रतों की ओर जाने की भावना भायें | आचार्य तुलसी ने अणुव्रत आंदोलन चला कर सचमुच मानव को मानव बनने की प्रेरणा दी । इनके अपनाने से समाज में प्रेम सहिष्णुता स्वयं बढेगी ।
इससे हम इतना स्पष्ट समझ सकते हैं कि गृहस्थ एक देशी त्याग करे और मुनि सर्वदेशी त्याग करे । त्रस जीवों की दिशधना से बचने के लिए रात्रि भोजन कदमूल का त्याग एवं पच उदंबर का त्याग हर गृहस्थ के लिए आवश्यक है । इसके लिए प्रत्येक गृहस्थ परिमाण व्रत का स्वीकार करे । ऐसी स्वीकृति से सभ्यादर्शन की स्वभाविक स्वीकृति हो जाती है । जब यह दर्शन उत्तरा त्तर चारित्र में परिवर्तन होने लगता है तब मोक्ष की ओर स्वतः प्रयाण मार्ग प्रशस्त होता है । संक्षिप्त में इन बारह व्रतों को समझे ।
अहिंसा : पिछले अध्याय में इसकी चर्चा की जा चुकी है ।
सत्याणुव्रत ; सत्य शब्द स्वयं सूर्यसा प्रकाशित है । उसकी व्याख्या करने की कोई आवश्यकता नहीं । हर युग में सत्य ईश्वर के रूप में शाश्वत और प्रतिष्ठित रहा है । जीवन को निर्मल और उन्नति के शिखर पर ले जाने की श्रेष्ठ कला इस सत्य में है ।
ऐसी वाणी बोलना जिससे किसी का अहित हो, 'आघात लगे वह असत्य है । ऐसी वाणी से होता है | सत्य को श्रेष्ट तप माना गया है । हम जीवन व्यवहार में भी देखते हैं कि जो सत्यवक्ता है-उसका मन प्रफुल्लित रहता
कषायभाव सहित अयथार्थ वचन कथन करना असत्य है अर्थात अपवाद बढ़े या सत्याणुत दूषित
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org