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- इन योग शास्त्रियोंने गुदा-भाग से मस्तिष्क भाग तक पांच या सात स्थानों के मुख्य केन्द्र मानकर चक्रों या कमलों की कल्पना की है । साधना की उत्तरोत्तर प्रगति से ये चक्र जागृत बनते हैं । कमल खिलते हैं और साधक निरंतर ईश्वरमय बनता जाता है । जब मस्तिष्क का सहस्र दल कमल पूर्ण रूप से खिल आता है तब साधक योग की चरम भूमि में प्रस्थापित हो जाता है। इन शास्त्रों में इन केन्द्रों के विविध रगे, प्रभावों एवं परिणामों की चर्चा की गई है। इस योग रुवं उसकी क्रियायें और फलश्रुति पर पृथक ग्रंथ ही लिखा जा सकता है । सहस्र कमल से विकसित योगी अनहदनाद सुनता है । इच्छानुसार ही कार्य करता है । दूसरे शब्दों में वह इन्द्रिय विजेता बन जाता हैं । मन की शांति और विश्वशांति के लिए आज योग के सर्वत्र प्रयोग हो रहे हैं । योग साधना अर्थात सामायिक की साधना ही है।
स्वाध्याय :
___सामायिक के साथ ही स्वाध्याय संलग्न है । मैं तो यह मानता हूँ कि देवदर्शक के लिए गये हुए श्रावक की मन्दिर जाने की पूर्णविधि या क्रिया तभी पूर्ण होती है जब वह दर्शन, पूजन, आरती, सामायिक और स्वाध्याय करे । साधारणतः स्वाध्याय शब्द को अर्थ पढना या वांचन करने के संदर्भ में ही प्रयुक्त होता हैं । आचार्यों ने भी उत्तम द्वादशांग वाणी (शास्त्र) का वांचन श्रवण उत्तम तप का ही अंग माना है । इसके लिए भी सामायिक की भौति त्रिकाल उत्तम समय माना है। ......
इस स्वाध्याय शब्द को आध्यात्मिक संदर्भ में देखें तो इसका अर्थ होगा 'स्व' अर्थात स्वयं या आत्मा । अध्याय से तात्पर्य है जानना समझना । इस प्रकार आत्मा के विषय में जानना, समझना,
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