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उपवास के दिन उपवासी को संपूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन शरीर और आत्मा दोनों से करना चाहिए । उसे देव या गुरु के समक्ष नियम लेना चाहिए। उसे चौविहार अर्थात उपवास से पूर्व अगले दिन एकासन तथा उपवास के दूसरे दिन प्रकासन का नियम लेना चाहिए | यदि इतना न बने तो एक दिन का उपवास का नियम लेना चाहिए । उपवासी को उपवास के दिन प्रातःकालस ही शुद्ध होकर मंदिरजी में जाकर दर्शन, जन, सामायिक, स्वाध्याय में समय व्यतीत करना चाहिए। पूरे दिन गृहस्थ के आरम्भादि कार्यों से दूर रहना चाहिए । शृंगार, मुखम जन, स्नानादि से दूर रहे एवं जल या भोजन कुछ भी ग्रहण न करें | दूसरे शब्दों में कहें तो साधू की दिनचर्या का पालन करना चाहिए | पूरे समय भगवान की भक्ति में लीन रहे । धर्मकथा का कथन व श्रवण करे । यदि गांव में मुनिमहाराज आदि हो तो आहार करावे | अधिक से अधिक समय सामायिक में बिताये । प्रतिक्रमण करे | भूमि पर ही शयन करे ! उपवास के दिन भूखा होने से अधिक निद्रा लेने से उपवास का अतिचार दोष लगता है ।
जैनधर्म निर्देश करता है कि उपवास व्रत का धारक तपस्या में स्थिर बनता है । आरंभ परिग्रह से मुक्त बनता है । उसे अहिंसा व्रत का फल प्राप्त होता है । भोजन के स्याग के साथ रागादि भाव में कमी और क्षय होता है । इन्द्रियों का दमन नहीं - अपितु संयमन होता है और इससे आत्मा का पोषण होता है । भोजन के त्याग के साथ कषायादि पापकर्मों का भी त्याग करना आवश्यक है अन्यथा उपवास का कोई फल नहीं मिल सकता | तात्पर्य यह किं व्यक्ति इस उपवास व्रत की साधना द्वारा क्रमशः तपस्या का कठोर साधना की ओर उन्मुख होता है । भूखे रहने का आनंद वही ले सकता है जिसने उपवास की महिमा समझी है ।
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